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राति कहौं रमि कै प्रभात प्रान-प्यारी पास,
आये घनस्याम स्याम सारी धारि आन को।
अधर अनूप माँहिं काजर की रेख धारि,
लाल लाल लोचन पै लाली पीव-पान की॥
‘चन्द्रकला’ द्विकल कलाधर अनेक धरे,
लखि उर गाढ़ बोली बेटी वृषभानु की।
इन्द्रजाल ढाली गल घाली कौन बाल आज,
आउन रसाल लाल माल मुकतान की॥