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गिरिराज कुँवरि रियासत भरतपुर की राजमाता थीं। आप का जन्म संवत् 1920 में हुआ। आपने ‘श्रीब्रजराजबिलास’ नामक ग्रंथ की रचना की। उसकी भूमिका में आपने जो विचार प्रकट किये हैं, उनसे परिचित होकर हमें विशेष प्रसन्नता हुई। आपने लिखा है:-

‘‘स्त्री का सांसारिक देव पति और पारमार्थिक श्री गोपाल महाराज हैं। इन्हीं दोनों को प्रसन्न करने में स्त्री को इस (गान) विद्या में भी निपुण होना चाहिये।’’

कृष्ण-काव्य कराने वाली अनेक देवियों की कविताओं का परिचय हम पिछले पृष्ठों में दे चुके हैं; यत्र-तत्र हमने इस बात पर खेद प्रकट किया है कि काव्य-रचना करते समय देवियों ने क्यों पुरुषों की तरह लज्जाहीनता से काम लिया। श्रीमती गिरिराज कुँवरि ने भी कृष्ण-काव्य ही किया है, परन्तु उनकी रचना में वह शाला-दुशाला मोय न चाहिये, कारी कमरिया कास।

कुटुम-कबीले मोय न चाहिये, श्याम-सुँदर सँग रास॥ कृष्णचन्द्र अब से मोय मिलिहैं, ये मन मैं है भास।