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हरषित अंग भरे हृदय उमंग भरे,
रघुबर आयौ मुद चारों दिसि ब्वै गयो।
सुन्दर सलोने सुभ्र सुखद सिंहासन पै,
जनक सप्रेम जाय आसन जबै दयो॥
‘रामप्रिया’ जानकी को देखत अनूप मुख,
पंकज कुमुद सम दूजे नृप ब्वै गयो।
मानों मणि-मंडित शिखर पै मयंक तापै,
मंजु दिनकर प्रात प्राची सो उदै भयो॥