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पग दाबे तो जीवन मुक्ति लही।
विष्णुपदी सम पति-पदपंकज छुवत परमपद होवे सही॥
निरखि निरखि मुख अति सुख पावत प्रेम समुद के धार बही।
रिद्धी सिद्धि सकल सुख देवैं सो लक्ष्मी पद हरि के गही॥
जहाँ पति-प्रीति तही सुख सरबस यही बात स्रुति साँच कही।