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फिरै चारिहु धाम करै ब्रत कोटि कहा बहु तीरथ तोय पिये तें।
जप होम करै अनगंत कछू न सरै नित गंग नहान किये तें॥
कहा धेनु को दान सहस्रन बार तुला गज हेम करोर दिये तें।
‘रघुबंशकुमारी’ बृया सब है जब लौं पति सेवै न नारि हिये तें॥