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जेहि के बल संकर सुद्ध हिये धरि ध्यान सदाहिं जपै गुन गाम।
जेहि के बल गीध अजामिल हूँ सेवरी अति नीच गई सुरधाम॥
जेहि के बल देह न गेह कछू बसुधा बस कीनों सबै सुर-काम।
धनु बान लिये तुम आठहु जाम अहो श्रीराम बसौ उर-धाम॥