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सीतल मन्द सुगंध समीर लगे जपि सज्जन की प्रिय बानी।
फूलि रहे बन-बाग समूह लहै निमि कीर्ति गुणकार ज्ञानी॥
नीक नवीन सुपल्लव सोह वढ़ै जिमि प्रीति के स्वारथ जानी।
गान रै कल कीर चकोर बढ़ैं जिमि बिप्र सुमंगल बानी॥