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"पद / 7 / रानी रघुवंशकुमारी" के अवतरणों में अंतर

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कहत पुकार कोइलिया हे ऋतुराज।
न्याय-दृष्टि से देखहु बिपिन-समाज॥
सोना सम्पति काज त्यागि सब साज।
भये उदासी बिरिया बिसरो लाज॥
ध्यान करहु इत अब सुध कस नहिं लेत।
तीछन बहत बयरिया करत अचेत॥