भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"समर्पण / संजय तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=मैं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:29, 23 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
बर्फ सदियों पुरानी पिघलती रही
सभ्यताओं के आँचल में ढलती रही
सृष्टि की वेदना की चुभन थी बहुत
काल चलता रहा हाथ मलती रही
देह थी जो सनातन की जर्जर हुई
भावनाये सृजन की थीं बर्बर हुई
भारती की थी आहत बहुत वेदना
शब्द आते रहे रात पलती रही
जिसकी मीठी छुवन से मिटी थी तपन
जिससे संभव हुआ आज है यह सृजन
वह ईंधन बन कर जलती रही
हमारी गृहस्थी चलती रही