भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चान फिर चमकलो / रामकृष्ण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=संझा-व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:28, 3 मार्च 2019 के समय का अवतरण

चाननी के आसे-पासे
फूल जे महकलो हे
गन्ह में नहाके एगो
भाव सन्सहकलो हे॥
दूर के सिमाना में
आझ सपना जे ऊगल।
भूल के भुलैआ में
नेह के कनी जे फूजल।
ओही पंछहरी में
गरबैया चहकलो हे॥
आसके समुन्नर में
झाँझ हे मनीरा हे।
साँस के मनिरवा में
गीत भरल पीरा हे॥
अखरे सिनेहिआ के
छंद फिन बहकलो हे॥
पान के न चन्नन के
धूप के न बाती के
साँझ भरल जिनगी के
बात हे, सँघाती के।
नीन में ऊबल-डूबल
चान फिन चहकलो हे॥