भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिना किसी बात के / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=अनिल जनवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
और हर बार जब भी मैं पानी के क़रीब जाता हूँ
 
और हर बार जब भी मैं पानी के क़रीब जाता हूँ
 
तो वहाँ हर बार मैं, बस, तेरी परछाईं ही पाता हूँ
 
तो वहाँ हर बार मैं, बस, तेरी परछाईं ही पाता हूँ
 +
 +
1960
  
 
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
</poem>
 
</poem>

21:22, 17 अप्रैल 2019 का अवतरण

बिना किसी बात के मेरे मन में कुछ होता है
बेहद घबराहट होती है और मेरा मन रोता है

बिना किसी बात के अपना काम छोड़ देता हूँ
भूल जाता हूँ कि मैं कौन हूँ और कहाँ बैठा हूँ

बिना किसी बात के मैं सपने देखा करता हूँ
होटलों में रहता हूँ और मन ही मन डरता हूँ

बिना किसी बात के मैं पेड़ पर चढ़ जाता हूँ
बिना किसी कारण ही दीवारों से लड़ जाता हूँ

बिना किसी बात के सुस्त भेड़िया बन जाता हूँ
बिना किसी बात के मैं चान्द पर चिल्लाता हूँ

बिना किसी बात के तारे बाग़ में आते हैं
झूलते हैं झूले पर और मुझे भी झुलाते हैं

बिना किसी बात के मुझे क़ब्र दिखाई देती है
और उस क़ब्र में मेरी हलकी छाया रहती है

बिना किसी बात के सुनहरा दिन मन में बस जाता है
बिना किसी बात के मेरा सिर लगातार चकराता है

और हर बार जब भी मैं पानी के क़रीब जाता हूँ
तो वहाँ हर बार मैं, बस, तेरी परछाईं ही पाता हूँ

1960

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय