भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हादसों का शहर है सम्भल जाइए / मृदुला झा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(कोई अंतर नहीं)

21:20, 4 मई 2019 के समय का अवतरण

कौन कब किस डगर है सम्भल जाइए।

नेक रस्ते पे चलते हुए आजकल,
आदमी दर-ब-दर है सम्भल जाइये।

चाहे कहिये सड़क इसको या इक नदी,
इस कदर रह गुजर है सम्भल जाइये।

दर्द कितने दिये हैं उसे आपने,
यह शराफत नहीं है सम्भल जाइये।

जान सस्ती मगर चीज महंगी यहाँ,
बाकी सब बेअसर है सम्भल जाइए।