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"सीता की तड़प / सुधा चौरसिया" के अवतरणों में अंतर
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क्यों देती हो
रावण को गालियाँ
उसने मेरा हरण जरूर किया
लेकिन मेरे शील को
अपमानित नहीं किया
वह कर सकता था
मेरे पूरे वजूद को घायल
मेरी आत्मा को कलंकित
दे सकता था
मेरी रगों में रेंगते साँप का दंश
लेकिन नहीं
उसने समझा था
औरत को
उसकी अहमियत को
उसकी प्रतिष्ठा को
पर राम ने मुझे बनाया
अपनी सम्पत्ति, वस्तु, यश
और अपयश का मुद्दा
फिर मैं कैसे कह सकती हूँ
कि मेरे हृदय में
कोई प्रेम स्फुरण हुआ ही नहीं
उसके लिए...