भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"औरत और खिड़की / सुधा चौरसिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:50, 11 जून 2019 के समय का अवतरण
शायद खिड़की और
औरत का रिश्ता
बहुत पुराना है
उतना ही
जितना औरत और
मर्द का
बचपन से जवानी तक
खिड़कियों से ताकना,
ससुराल में
खिड़की के पल्ले को
थोड़ा टेढ़ा कर झाँकना
खिड़कियों से
ताल-मेल बैठाती
ये औरतें
कब खिड़की से कूद
मांस और कसाईयों की
पगडंडी पर दौड़ पड़ी
पता ही नहीं चला
अपने वजूद की
तड़प के साथ
अपनी धरती
अपना आकाश पाने
इन पगडंडियों से ही तो जाना है...