भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ालीपन / स्नेहमयी चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्नेहमयी चौधरी |संग्रह=पूरा ग़लत पाठ / स्नेहमयी चौधरी }...)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
मैंने उसे दे देना चाहा था
 
मैंने उसे दे देना चाहा था
  
किसी और को।  
+
किसी और को।
 
+
 
+
क्योंकि
+
 
+
 
+
कुछ दिन पहले तक
+
 
+
निर्णय लेने में
+
 
+
उसे तनिक भी देर नहीं लगती थी।
+
 
+
 
+
::::अब
+
 
+
:::सुबह किस दिशा में मुँह करके खड़ी हो?
+
 
+
:::::शाम किस दिशा में?
+
 
+
::::::पता नहीं चलता।
+
 
+
 
+
एक सड़क घर ले जाती है
+
 
+
दूसरी दफ़्तर,
+
 
+
सुबह घर वापस आने को मन करता है
+
 
+
शाम दफ़्तर लौट जाने का 
+
 
+
 
+
वैसे
+
 
+
एक निर्णय विवशता की तरह चिपका है।
+
 
+
क्योंकि
+
 
+
शाम : दफ़्तर बंद हो जाता है
+
 
+
सुबह : घर।
+
 
+
फ्रस्ट्रेशन को
+
 
+
मुट्ठी में कसकर पकड़े हुए भी
+
 
+
विपरीत दिशाओं की ओर
+
 
+
वह भागती रहती है।
+

20:43, 12 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

दु:ख

जो मेरे अकेलेपन का साथी था

वह भी छोड़ कर चला गया

क्योंकि

मैंने उसे दे देना चाहा था

किसी और को।