भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्यों आते है गम / सुनीता शानू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता शानू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:52, 9 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

क्यों आते है गम
जिन्दगी में
क्योंकि...
तुम बुलाते हो,
मगर कैसे
कौन चाहेगा
किसे पसंद है
गम से सराबोर ज़िन्दगी
मगर यही सच है
तुम्ही बुलाते हो
याद रखते हो हर पल
पिता का वह चाँटा
जो लगाया था
तुम्हारी नादानियों पर,
गुरू की वह फ़टकार
जो लगाई थी
तुम्हारी शैतानियों पर,

मगर भूल जाते हो,
प्यार को, उस दुलार को,
जो दिया था तुम्हें
हर कामयाबी पर
लेकिन
हर कड़वी बात
रहती है तुम्हें
हमेशा याद
अज़ीज की तरह-

सोचो
जिनकी इतनी चाहत है
अहसास है जिनका
हर पल
वे भला क्यों न आयेंगे
जब भी बुलाओगे
चले आयेंगे