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"फैली बाँहें / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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काश । 'बाँह फैली' बन पातीं पंख ही :
 
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वे, जो मुझे बाँधने में असमर्थ थीं ।
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वे, जो मुझे बांधने में असमर्थ थीं ।

13:17, 15 अगस्त 2008 का अवतरण

फिर तुमने बाँहें फैला, आकाश तक

उड़ जाने की अभिलाषा मन में भरी,

फिर मैनें सोचा- शायद मैं पंख हूँ

जो आ जाता काम, न यदि तुम त्यागतीं।


त्यागे जाने पर तो अब असहाय हूँ।


काश । 'बाँह फैली' बन पातीं पंख ही :

वे, जो मुझे बांधने में असमर्थ थीं ।