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"गीत 5 / प्रशान्त मिश्रा 'मन'" के अवतरणों में अंतर

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क्यों प्रणय की
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भाग्य का बस खेल है यह
साधना में मिल रही है पीर हमको-
+
ख़ुश रहो तुम हो जहाँ भी
हम कि बस इक मन चुराये और तुमने चोर समझा।
+
हम तुम्हारे प्रेम को शुभकामनाएं दे रहे हैं।
चहचहाते पंक्षियों सँग साँझ-सिंदूरी सुहावन।
+
रह न सकती दूर कोई भी कुमुदनी! जब भ्रमर से।
चाँद अपनी चाँदनी में जी रहा था पूर्ण यौवन।
+
फिर कहो क्या पी न सकते हम तुम्हारा रस अधर से।
मध्य उनके प्रेम है री! या नहीं यह जानने को-
+
चुप रहो मत , बोल दो री ,हाय! अब तो बोल दो री!
गा रहे थे पीर अपनी और तुमने शोर समझा।
+
क्या तुम्हारी देह को हम यातनाएँ दे रहे हैं.?
हम कि बस इक मन चुराए ...
+
हम तुम्हारे प्रेम को ...
पुष्प निंदा कर न सकता है भ्रमर के चुंबनों का।
+
स्वप्न पूरे हों तुम्हारे बस यही है स्वप्न मन का।
ये सहज सौंदर्य वर्धक पुष्प का औ मधुवनों का।
+
क्षण न होते व्यर्थ कोई अर्थ है अपने मिलन का।
देख कर यह दृश्य हमने बस भ्रमर का प्रेम पाया-
+
आँख का अंजन तुम्हारे बह न जाए एषणा में-
और तुमने रुक्ष होकर बस उसे बरज़ोर समझा।
+
सो तुम्हारे स्वप्न को शुचि अर्चनाएं दे रहे हैं।
हम कि बस इक मन चुराए ...
+
हम तुम्हारे प्रेम को ...
प्राण! तुमसे है निवेदन तुम हमें स्वीकार कर लो।
+
तुम हमारे प्रेम का ही आँकलन करने लगीं हो।
देह की घुर वेदनाएं कह रहीं हैं अंक भर लो।
+
और अपनी नींद को तुम आप से हरने लगीं हो।
मोरनी! तन झूम उठता है छुअन पाकर तुम्हारी-
+
जबकि तुम थी और हो भी आज-कल हरपल सुरक्षित
तुम हमें समझी न समझी किंतु मन का मोर समझा।
+
चूम कर तुमको महज हम सांत्वनाएँ दे रहे हैं।
हम कि बस इक मन चुराए ...
+
हम तुम्हारे प्रेम को ...
 
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16:09, 5 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

भाग्य का बस खेल है यह
ख़ुश रहो तुम हो जहाँ भी
हम तुम्हारे प्रेम को शुभकामनाएं दे रहे हैं।
रह न सकती दूर कोई भी कुमुदनी! जब भ्रमर से।
फिर कहो क्या पी न सकते हम तुम्हारा रस अधर से।
चुप रहो मत , बोल दो री ,हाय! अब तो बोल दो री!
क्या तुम्हारी देह को हम यातनाएँ दे रहे हैं.?
हम तुम्हारे प्रेम को ...
स्वप्न पूरे हों तुम्हारे बस यही है स्वप्न मन का।
क्षण न होते व्यर्थ कोई अर्थ है अपने मिलन का।
आँख का अंजन तुम्हारे बह न जाए एषणा में-
सो तुम्हारे स्वप्न को शुचि अर्चनाएं दे रहे हैं।
हम तुम्हारे प्रेम को ...
तुम हमारे प्रेम का ही आँकलन करने लगीं हो।
और अपनी नींद को तुम आप से हरने लगीं हो।
जबकि तुम थी और हो भी आज-कल हरपल सुरक्षित
चूम कर तुमको महज हम सांत्वनाएँ दे रहे हैं।
हम तुम्हारे प्रेम को ...