भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रबुद्ध युवा, मैं / हरीश प्रधान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश प्रधान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:21, 11 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

साँप निकल जाने पर
लकीर पीटने
और निर्णय लेने में
विलम्‍ब करने का
अभ्‍यस्त मैं
क्रांति कीआँच को
जब-जब अपने निकट पाता हूँ
उसके सहगामी होने की बाँग
रूक-रूक कर
आराम से लगाता हूँ
एक निहायत अभावग्रस्त बना
अपनी कुंठाओं में संत्रस्त
महात्वाकांक्षाग्रस्त
थोथे वक्तव्यों की बैसाखी पर टिका
एक प्रबुद्ध वर्गीय
कथित युवा

अपने आक्रोश को सुरक्षित रखता हूँ
क्रांति कीआग में
स्वयं को होम देना
मैं...
सीख नहीं पाया हूँ
पड़ोस की क्रांति का धुआँ
जब-जब मेरी आँखों में भरता है
तिलमिला कर
अपनी सक्रिय भागीदारी का दावा
वक्तव्यों में प्रकट करता हूँ
न्यायोचित अधिकारों के लिये
मरते हुए अपने किसी साथी को
आगे बढ़ कर
साथ देने का, घोर संकोची
मैं ...
सिर्फ पलायित भीड़
और अराजक तोडफ़ोड़ की
भर्त्‍सना कर
आत्मतुष्टि की उच्चसीमा पर
स्वयं सुरक्षित कर लेना
अब, मेरी प्रवृत्ति‍हो गई है।