भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अशीर्षक / कुबेरनाथ राय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरनाथ राय |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:10, 18 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
नयन मूँदे अन्तर में तत्क्षण बही जाह्नवी वरुणा
शिरा-शिरा में प्रति धमनी में बूँद-बूँद मेरी पहचानी
मेरे अन्तर में जब जागा सहज चेतना का अभिमानी
कथा डुबोती नहीं तुम्हारी निर्मम विगलित करुणा।
भाई पलभर ठहरो मन का दुर्ग टूटता गिरता
कच्चे घट में स्नेहधार में तिरता प्रतिपल गलता
यह करुणा है ऐसी जिससे जग की दुखती रग को
आराम मिले लेकिन अपना तो अस्तित्व गला
रहा नहीं मैं वही दाँव आखिरी था जिसको
हार चुका, तुम हँसे और मैं खाली हाथ चला।
[असमाप्त, 1962]