भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सत्ताइस सितम्बर बासठ / कुबेरनाथ राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरनाथ राय |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:14, 18 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

मैंने सुना कल रात
अपनी
इस घरा का प्रेम पुलकित गान
अपनी धरा का रोषमय आह्वान

मैंने सुना कल रात
ओ उर्वसीयम-उर्वशी,
तुम्हारे नयन में सोते हुए
चीड़ श्यामल साल के कान्तार
आदिम नींद तज
कल उठ खड़े हो चल दिये
कल मूर्छा कटी
कल चमकी धरा-आकाश
कल तुम्हारे स्नेह स्पर्श से
हो गयी मोहक अधिक
एक मुट्ठी बर्फ
एक मुट्ठी घास

मैंने सुना कल रात
बहुत दिन के बाद कल मध्याह्न
तुम्हारे तन गये भ्रूबंक
बहुतों ने लिया उर चीर
क्षण में अनेको ने
लुटाया शीश

रक्त ने दी तुरन्त
बन्धु की
सन्तान की पहचान
कि तुम्हारा प्यार है न अनाथ
इसी से हंसने लगी लद्दाख की वह बर्फ
इसी से हंसने लगे आसाम के कान्तार
रक्तसिंचित
स्नेह पिघलित
जननी महीसे
धरती प्रियासे
आधी रात को उठने लगे कल
कुछ प्रेम पुलकित गान,
-कुछ रोषमय आह्वान

[ २६ सितम्बर को नेफा (उर्वसीयम) पर चीनी आक्रमण हुआ था। यह कविता दूसरे दिन लिखी गयी थी - २७ सितम्बर १९६२ को ]