"सृष्टि कामरूपा : चर्यापद / कुबेरनाथ राय" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरनाथ राय |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:28, 18 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
(१)
बजती है दूर कहीं मादल
आती है फूल लदी नाव
अकेले न जाना नदीतट बन्धु
राह भी मांगेगी दाव
गोता लगाना छूना न नीर
बहती नदी, तट खनना न कूप
दिन में चरना माणिक औ मोती
रातों में जग्ना तुम कामरू।
(२)
कच्छप की पीठ में दूहो दूध
शाखा पर तेंतुल जल में कुम्भीर
यह सब दिन की चर्चा है बन्धु
रातों में फूल झरे. कामरू-तीर
बजती है वंशी चलती है नाव
कि उठती है हाँक कि 'आया रे बान'
फेंको गिराव खीचो ले रस्सी
आया रे यौवन आया रे बान
(३)
होता मैं योगी मछिन्दरनाथ
बुनता हवा का निर्गुण जाल
लखकर नदिया हुई अकूल
पीता पवन और भखता काल
इंगला-पिंगला करती गान
ललना१ का मुख करता ध्यान
छक कर पीता इच्छा वारि
अकुल महासुख नखशिख पाना
१. बौद्धों की तांत्रिक साधना में सुषुम्न को ललना कहते हैं।