"कवि-2 / मरीना स्विताएवा" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मरीना स्विताएवा |अनुवादक=वरयाम स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
बहुत हैं दुनिया में लोग कृत्रि, अदृश्य | बहुत हैं दुनिया में लोग कृत्रि, अदृश्य | ||
कोढ़ के दाग़ — उनकी पहचान ! | कोढ़ के दाग़ — उनकी पहचान ! | ||
− | कमी नहीं दुनिया में | + | कमी नहीं दुनिया में ईओवों की । |
ईओव<ref>बाइबिल में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण चरित्र, जिसकी परीक्षा लेने के लिए ईश्वर ने उसे सन्तान व परिवार के सुख से वंचित किया</ref> से क्या किसी को कभी ईर्ष्या हुई ! | ईओव<ref>बाइबिल में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण चरित्र, जिसकी परीक्षा लेने के लिए ईश्वर ने उसे सन्तान व परिवार के सुख से वंचित किया</ref> से क्या किसी को कभी ईर्ष्या हुई ! | ||
15:10, 27 मार्च 2020 के समय का अवतरण
बहुत हैं दुनिया में लोग अवांछित, अतिरिक्त,
कहीं नहीं हैं उनके नाम इस क्षितिज में,
तुम्हारे सन्दर्भ ग्रन्थों में भी दर्ज नहीं उनके नाम,
गन्दे से भी गन्दा गढ़ा उन्हें लगता है अपना घर ।
बहुत हैं दुनिया में लोग खोखले
गूँगे होने का अभिनय करते हुए कूड़े के ढेर,
पहियों के नीचे से छिटकते हुए कीचड़
तुम्हारे रेशमी स्कर्ट की खरोंचें लिए मानों कीलें ।
बहुत हैं दुनिया में लोग कृत्रि, अदृश्य
कोढ़ के दाग़ — उनकी पहचान !
कमी नहीं दुनिया में ईओवों की ।
ईओव<ref>बाइबिल में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण चरित्र, जिसकी परीक्षा लेने के लिए ईश्वर ने उसे सन्तान व परिवार के सुख से वंचित किया</ref> से क्या किसी को कभी ईर्ष्या हुई !
हम कवि हैं — कविताओं में प्रवेश करते हैं जातिच्युत होकर
लेकिन किनारों से बाहर आते ही
हम देवकन्याओं से छीनते हैं देवताओं को
और देवताओं से देवकन्याओं को !
22 अप्रैल 1923
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह