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"आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है / रामानंद 'दोषी'" के अवतरणों में अंतर

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आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है न भूलो,  
 
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कंटकों ने सिर हमें सादर झुकाया है न भूलो,  
 
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भारत माता
 
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सिन्धु का मथकर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए,  
 
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औ' हमारे तेज से सूरज लजाया है न भूलो!
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वे हमीं तो हैं कि इक हुंकार से यह भूमि कांपी,  
 
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वे हमीं तो हैं जिन्होंने तीन डग में सृष्टि नापी,  
 
वे हमीं तो हैं जिन्होंने तीन डग में सृष्टि नापी,  
 
और वे भी हम कि जिनकी सभ्यता के विजय रथ की
 
और वे भी हम कि जिनकी सभ्यता के विजय रथ की
धूल उड़ कर छोड़ आई छाप अपनी विश्वव्यापी!
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धूल उड़ कर छोड़ आई छाप अपनी विश्वव्यापी।
  
 
वक्र हो आई भृकुटी तो ये अचल नागराज डोले,  
 
वक्र हो आई भृकुटी तो ये अचल नागराज डोले,  
 
दश दिशाओं के सकल दिक्पाल ये गजराज डोले,  
 
दश दिशाओं के सकल दिक्पाल ये गजराज डोले,  
 
डोल उट्ठी है धरा, अम्बर, भुवन, नक्षत्र-मंडल,  
 
डोल उट्ठी है धरा, अम्बर, भुवन, नक्षत्र-मंडल,  
ढीठ अत्याचारियों के अहंकारी ताज डोले!
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ढीठ अत्याचारियों के अहंकारी ताज डोले।
  
 
सुयश की प्रस्तर-शिला पर चिह्न गहरे हैं हमारे,  
 
सुयश की प्रस्तर-शिला पर चिह्न गहरे हैं हमारे,  
 
ज्ञान-शिखरों पर धवल ध्वज-चिन्ह हैं लहरे हमारे,  
 
ज्ञान-शिखरों पर धवल ध्वज-चिन्ह हैं लहरे हमारे,  
 
वेग जिनका यों कि जैसे काल की अंगड़ाइयाँ हों,  
 
वेग जिनका यों कि जैसे काल की अंगड़ाइयाँ हों,  
उन तरंगों में निडर जलयान ठहरे हैं हमारे!
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मस्त योगी हैं कि हम सुख देखकर सबका सुखी हैं,  
 
मस्त योगी हैं कि हम सुख देखकर सबका सुखी हैं,  

08:27, 16 अप्रैल 2020 का अवतरण

आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है न भूलो,
कंटकों ने सिर हमें सादर झुकाया है न भूलो,
सिन्धु का मथकर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए,
औ' हमारे तेज से सूरज लजाया है न भूलो।

वे हमीं तो हैं कि इक हुंकार से यह भूमि कांपी,
वे हमीं तो हैं जिन्होंने तीन डग में सृष्टि नापी,
और वे भी हम कि जिनकी सभ्यता के विजय रथ की
धूल उड़ कर छोड़ आई छाप अपनी विश्वव्यापी।

वक्र हो आई भृकुटी तो ये अचल नागराज डोले,
दश दिशाओं के सकल दिक्पाल ये गजराज डोले,
डोल उट्ठी है धरा, अम्बर, भुवन, नक्षत्र-मंडल,
ढीठ अत्याचारियों के अहंकारी ताज डोले।

सुयश की प्रस्तर-शिला पर चिह्न गहरे हैं हमारे,
ज्ञान-शिखरों पर धवल ध्वज-चिन्ह हैं लहरे हमारे,
वेग जिनका यों कि जैसे काल की अंगड़ाइयाँ हों,
उन तरंगों में निडर जलयान ठहरे हैं हमारे।

मस्त योगी हैं कि हम सुख देखकर सबका सुखी हैं,
कुछ अजब मन है कि हम दुख देखकर सबका दुखी हैं,
तुम हमारी चोटियों की बर्फ़ को यो मत कुरेदो,
दहकता लावा हृदय में है कि हम ज्वालामुखी हैं!

लास्य भी हमने किए हैं और तांडव भी किए हैं,
वंश मीरा और शिव के, विष पिया है औ' जिए हैं,
दूध माँ का, या कि चन्दन, या कि केसर जो समझ लो,
यह हमारे देश की रज है कि हम इसके लिए हैं!