भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
तुम मेरी ग़ुलामी हो और हो मेरी आज़ादी | तुम मेरी ग़ुलामी हो और हो मेरी आज़ादी | ||
शुरू गर्मी की रात में मेरा जला हुआ गोश्त हो | शुरू गर्मी की रात में मेरा जला हुआ गोश्त हो | ||
− | मेरे देश हो | + | मेरे देश हो तुम । |
− | बादाम | + | हरे बादाम सी हरी आँखों में |
रेशमी हरापन हो | रेशमी हरापन हो | ||
तुम विशाल हो, | तुम विशाल हो, | ||
− | ख़ूबसूरत हो, विजयी | + | ख़ूबसूरत हो, विजयी हो । |
तुम मेरा दुख हो, | तुम मेरा दुख हो, | ||
जिसे अभी महसूस नहीं किया था मैंने | जिसे अभी महसूस नहीं किया था मैंने | ||
जिसे महसूस कर रहा हूँ मैं | जिसे महसूस कर रहा हूँ मैं | ||
− | ज़्यादा से | + | ज़्यादा से ज़्यादा । |
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' | ||
</poem> | </poem> |
19:34, 15 मई 2020 के समय का अवतरण
तुम मेरी ग़ुलामी हो और हो मेरी आज़ादी
शुरू गर्मी की रात में मेरा जला हुआ गोश्त हो
मेरे देश हो तुम ।
हरे बादाम सी हरी आँखों में
रेशमी हरापन हो
तुम विशाल हो,
ख़ूबसूरत हो, विजयी हो ।
तुम मेरा दुख हो,
जिसे अभी महसूस नहीं किया था मैंने
जिसे महसूस कर रहा हूँ मैं
ज़्यादा से ज़्यादा ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय