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"रोया नहीं एक बार भी / अखिलेश्वर पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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जिंदगी का बोझ उठाया न गया तो
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लाश ही कंधे पर उठा ली उसने
 
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कठकरेजी होगा वह
 
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बीवी के मरने पर रोना तो चाहिये था
 
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कैसे रोता वह-
 
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मर गयी थी इंसानियत पहले ही  
 
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बिटिया जो साथ थी उसके
 
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सयानी सी
 
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उम्र और मन दोनों से
 
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कैसे रोता वह-
 
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दिखावा थोड़े न करना था उसे
 
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शिकायत थोड़ी न करनी थी उसे
 
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कैसे रोता वह
 
कैसे रोता वह
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क्यों रोता वह-
 
क्यों रोता वह-
 
जब बीवी ही मर गयी
 
जब बीवी ही मर गयी

14:42, 24 मई 2020 के समय का अवतरण

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ज़िन्दगी का बोझ उठाया न गया तो
लाश ही कंधे पर उठा ली उसने
सब सोच रहे-
कठकरेजी होगा वह

रोया नहीं एक बार भी

बीवी के मरने पर रोना तो चाहिये था
कैसे रोता वह-
बीवी तो बाद में मरी
मर गयी थी इंसानियत पहले ही
उसके लिए

कैसे रोता वह-
बिटिया जो साथ थी उसके
सयानी सी
उम्र और मन दोनों से

कैसे रोता वह-
दिखावा थोड़े न करना था उसे
मुआवजा थोड़ी न माँगनी थी उसे
शिकायत थोड़ी न करनी थी उसे
कैसे रोता वह

क्यों रोता वह-
जब बीवी ही मर गयी
जब खो दिया उसने आधी जिंदगी
जब जीना ही है बिटिया के लिए
दीना माँझी नहीं, इंद्रजीत है वह
सीख लिया है उसने
कैसे लड़ी जाती है अपनी लड़ाई
दुनियावी बेहयाई को नजरअंदाज करके

(दीना माझी वह शख्स है जो ओड़िशा में सरकारी अनदेखी का शिकार बना और एंबुलेंस नहीं मिलने पर अपनी पत्नी का शव कंधे पर लेकर अस्पताल से घर के लिए पैदल ही चल दिया)