भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमने जो भोगा सो गाया / बलबीर सिंह 'रंग'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKVID|v=}}
 
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna

11:37, 25 मई 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

हमने जो भोगा सो गाया।
अकथनीयता को दी वाणी,
वाणी को भाषा कल्याणी;
कलम कमण्डल लिये हाथ में,
दर-दर अलख जगाया।
हमने जो भोगा सो गाया।

सहज भाव से किया खुलासा,
आँखों देखा हुआ तमाशा;
कौन करेगा लेखा-जोखा,
क्या खोया क्या पाया?
हमने जो भोगा सो गाया।

पीड़ाओं के परिचायक हैं,
और भला हम किस लायक हैं;
अन्तर्मठ की प्राचीरों में,
अनहद नाद गुँजाया।
हमने जो भोगा सो गाया।