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"आँगन में फुदके / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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असमय भूली वो
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बचपन अपना ।
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नीम की छाँव
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गुट्टी खेलना
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भाई-बहनों संग
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जब अम्माँ सो जाती।
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बिन बात के
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लड़ना-झगड़ना
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चिल्ला के रोना
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फिर माँ की धौल खा
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इकठ्ठे बैठ रोना ।
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भूली न जाएँ
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बचपन की बातें
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दोस्तों के संग
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लड़ना-झगड़ना
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फिर एक हो जाना ।
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बेटी का मन
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पराया नहीं होता
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न तो पहले,
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न शादी के बाद ही
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कैसे कहे पराया ?
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चिड़िया बन
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आँगन में फुदके
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खिलखिलाए
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बहे ठण्डी हवा-सी
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दूर देश को जाए ।
  
  
 
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20:12, 13 जून 2020 के समय का अवतरण

1
वो हरा पेड़
डोलता तो कहता
मैं दोस्त तेरा
काटा मुझे जो तूने
लगा पीठ में छुरा ।
2
पोपला मुँह
दादी बैठी उदास
चूल्हे के पास
लड्डू-मठ्ठी बाँधती
पोता ले जाए साथ ।
3
हँसती बेटी
आँगन महकाती
बड़ी हो गई
परदेसी हो गई
बाबुल राह तके ।
4
बड़ी बहन
सँभालती छोटी को
बड़ी हो गई
असमय भूली वो
बचपन अपना ।
5
नीम की छाँव
गर्मी की दोपहरी
गुट्टी खेलना
भाई-बहनों संग
जब अम्माँ सो जाती।
6
बिन बात के
लड़ना-झगड़ना
चिल्ला के रोना
फिर माँ की धौल खा
इकठ्ठे बैठ रोना ।
7
भूली न जाएँ
बचपन की बातें
दोस्तों के संग
लड़ना-झगड़ना
फिर एक हो जाना ।
8
बेटी का मन
पराया नहीं होता
न तो पहले,
न शादी के बाद ही
कैसे कहे पराया ?
9
चिड़िया बन
आँगन में फुदके
खिलखिलाए
बहे ठण्डी हवा-सी
दूर देश को जाए ।