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"जीवन भर / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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देर हो गई
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बेटी घर न आई
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घबराने लगी माँ
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भैया को भेजा-
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‘थामे रखना हाथ
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भीड़ भरे रस्ते पे।’
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कोमल हाथ
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कलम को पकड़
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लिखना सीख रहे
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माँ की आँखों में
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सपनों का सागर
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पार है उतरना ।
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जीवन भर
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रिश्तों की लाश ढोई
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दर-दर भटकी
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काँधों पर लादे
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सपनों का बैताल.
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मिला नहीं जवाब ।
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18
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जब भी चाहा
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साथ कोई न आया
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अपना या पराया
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फिर भी सीखा
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गुलाब सी ज़िन्दगी
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मुस्करा कर जीना ।
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ढूँढती फिरे
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पनियाली नज़र
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बुढ़ापे का सहारा
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चिठ्ठी में आए
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कितना बँटा-बँटा
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कलेजे का टुकड़ा ।
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कितना चाहा
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तेरा साथ निभाना
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पर तुझे  भाया,
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मुझको छोड़
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ग़ैरों के काँधों पर
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तुझे था पार जाना ।
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21
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प्यासी धरती
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वर्षा की बाट जोहे
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बेवफ़ा हैं बादल
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कुछ पल को
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निहार लेता रूप
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मुँह फेर भागता ।
  
  
  
 
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20:18, 13 जून 2020 के समय का अवतरण

15
देर हो गई
बेटी घर न आई
घबराने लगी माँ
भैया को भेजा-
‘थामे रखना हाथ
भीड़ भरे रस्ते पे।’
16
कोमल हाथ
कलम को पकड़
लिखना सीख रहे
माँ की आँखों में
सपनों का सागर
पार है उतरना ।
17
जीवन भर
रिश्तों की लाश ढोई
दर-दर भटकी
काँधों पर लादे
सपनों का बैताल.
मिला नहीं जवाब ।
18
जब भी चाहा
साथ कोई न आया
अपना या पराया
फिर भी सीखा
गुलाब सी ज़िन्दगी
मुस्करा कर जीना ।
19
ढूँढती फिरे
पनियाली नज़र
बुढ़ापे का सहारा
चिठ्ठी में आए
कितना बँटा-बँटा
कलेजे का टुकड़ा ।
20
कितना चाहा
तेरा साथ निभाना
पर तुझे भाया,
मुझको छोड़
ग़ैरों के काँधों पर
तुझे था पार जाना ।
21
प्यासी धरती
वर्षा की बाट जोहे
बेवफ़ा हैं बादल
कुछ पल को
निहार लेता रूप
मुँह फेर भागता ।