भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीवन भर / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियंका गुप्ता |संग्रह= }} Category: से...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category: सेदोका]] | [[Category: सेदोका]] | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 15 | ||
+ | देर हो गई | ||
+ | बेटी घर न आई | ||
+ | घबराने लगी माँ | ||
+ | भैया को भेजा- | ||
+ | ‘थामे रखना हाथ | ||
+ | भीड़ भरे रस्ते पे।’ | ||
+ | 16 | ||
+ | कोमल हाथ | ||
+ | कलम को पकड़ | ||
+ | लिखना सीख रहे | ||
+ | माँ की आँखों में | ||
+ | सपनों का सागर | ||
+ | पार है उतरना । | ||
+ | 17 | ||
+ | जीवन भर | ||
+ | रिश्तों की लाश ढोई | ||
+ | दर-दर भटकी | ||
+ | काँधों पर लादे | ||
+ | सपनों का बैताल. | ||
+ | मिला नहीं जवाब । | ||
+ | 18 | ||
+ | जब भी चाहा | ||
+ | साथ कोई न आया | ||
+ | अपना या पराया | ||
+ | फिर भी सीखा | ||
+ | गुलाब सी ज़िन्दगी | ||
+ | मुस्करा कर जीना । | ||
+ | 19 | ||
+ | ढूँढती फिरे | ||
+ | पनियाली नज़र | ||
+ | बुढ़ापे का सहारा | ||
+ | चिठ्ठी में आए | ||
+ | कितना बँटा-बँटा | ||
+ | कलेजे का टुकड़ा । | ||
+ | 20 | ||
+ | कितना चाहा | ||
+ | तेरा साथ निभाना | ||
+ | पर तुझे भाया, | ||
+ | मुझको छोड़ | ||
+ | ग़ैरों के काँधों पर | ||
+ | तुझे था पार जाना । | ||
+ | 21 | ||
+ | प्यासी धरती | ||
+ | वर्षा की बाट जोहे | ||
+ | बेवफ़ा हैं बादल | ||
+ | कुछ पल को | ||
+ | निहार लेता रूप | ||
+ | मुँह फेर भागता । | ||
</poem> | </poem> |
20:18, 13 जून 2020 के समय का अवतरण
15
देर हो गई
बेटी घर न आई
घबराने लगी माँ
भैया को भेजा-
‘थामे रखना हाथ
भीड़ भरे रस्ते पे।’
16
कोमल हाथ
कलम को पकड़
लिखना सीख रहे
माँ की आँखों में
सपनों का सागर
पार है उतरना ।
17
जीवन भर
रिश्तों की लाश ढोई
दर-दर भटकी
काँधों पर लादे
सपनों का बैताल.
मिला नहीं जवाब ।
18
जब भी चाहा
साथ कोई न आया
अपना या पराया
फिर भी सीखा
गुलाब सी ज़िन्दगी
मुस्करा कर जीना ।
19
ढूँढती फिरे
पनियाली नज़र
बुढ़ापे का सहारा
चिठ्ठी में आए
कितना बँटा-बँटा
कलेजे का टुकड़ा ।
20
कितना चाहा
तेरा साथ निभाना
पर तुझे भाया,
मुझको छोड़
ग़ैरों के काँधों पर
तुझे था पार जाना ।
21
प्यासी धरती
वर्षा की बाट जोहे
बेवफ़ा हैं बादल
कुछ पल को
निहार लेता रूप
मुँह फेर भागता ।