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"आँखें नम / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | खोजता है- प्रेम का वटवृक्ष, हाँ। | ||
+ | ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ? | ||
+ | हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या? | ||
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06:14, 27 जून 2020 के समय का अवतरण
एक शाम; आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा।
आज मेरी आँखों में- वही शख़्स,
खोजता है- प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?