"चैतको साँझ / सुदीप पाख्रिन" के अवतरणों में अंतर
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− | चैतको | + | चैतको कुरुप भित्तामा |
− | धुलिंदै लहराइरहेका गोधूलीका | + | धुलिंदै लहराइरहेका गोधूलीका चित्रहरु |
− | + | शोकगीतझैं स्वाँ.... स्वाँ.... चलिरहेका | |
− | उराठिला मौसमका | + | उराठिला मौसमका कोलाहलहरु |
− | साँझ | + | साँझ बिरक्तिंदै चूपचाप छ ! |
− | + | बिरक्तिंदै साँझ चूपचाप छ !! | |
− | सडक | + | सडक चिच्याउँदैछ |
− | कानै चपाउने उग्र | + | कानै चपाउने उग्र यांत्रिक आवाजहरु |
− | सडक छेउका | + | सडक छेउका दोकानहरु कराउँदैछन् |
पपगीत/फिल्मीगीतका मस्तिष्कै पकाउने चर्का धूनहरु | पपगीत/फिल्मीगीतका मस्तिष्कै पकाउने चर्का धूनहरु | ||
साँझ उराठिंदै मौन छ ! | साँझ उराठिंदै मौन छ ! | ||
उराठिंदै साँझ मौन छ !! | उराठिंदै साँझ मौन छ !! | ||
− | + | कृतिम हल्लाहरुले थिचेका | |
− | + | चराहरुका संगीतहरु | |
− | एक्सपोज्ड | + | एक्सपोज्ड बैंशहरुका |
− | भारी बोकिरहेका | + | भारी बोकिरहेका फुटपाथहरु |
साँझ उकुसमुकुसिंदै शान्त छ ! | साँझ उकुसमुकुसिंदै शान्त छ ! | ||
उकुसमुकुसिंदै साँझ शान्त छ !! | उकुसमुकुसिंदै साँझ शान्त छ !! | ||
तेलकासा, डण्डीबियो, लुकामारी | तेलकासा, डण्डीबियो, लुकामारी | ||
− | बिर्सिसकेका बालक | + | बिर्सिसकेका बालक गल्लीहरु |
− | राजकुमार दिक्पालका मिथहरु र | + | राजकुमार दिक्पालका मिथहरु र लोरीहरु |
− | थाती राखेका सुकुमार निश्चल | + | थाती राखेका सुकुमार निश्चल निंद्राहरु |
साँझ अत्तालिंदै निस्तब्ध छ ! | साँझ अत्तालिंदै निस्तब्ध छ ! | ||
अत्तालिंदै साँझ निस्तब्ध छ !! | अत्तालिंदै साँझ निस्तब्ध छ !! | ||
− | साँझ छ | + | साँझ छ — |
− | + | यादहरुका कोलाजहरु छन् | |
अनि | अनि | ||
− | + | गजलहरुका धूनहरुको तापक्रममा | |
− | पग्लिरहेको छ साँझ | + | पग्लिरहेको छ साँझ — आँखाहरुबाट ! |
− | पग्लिरहेको छ | + | पग्लिरहेको छ — चैतको साँझ !! |
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14:13, 28 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
चैतको कुरुप भित्तामा
धुलिंदै लहराइरहेका गोधूलीका चित्रहरु
शोकगीतझैं स्वाँ.... स्वाँ.... चलिरहेका
उराठिला मौसमका कोलाहलहरु
साँझ बिरक्तिंदै चूपचाप छ !
बिरक्तिंदै साँझ चूपचाप छ !!
सडक चिच्याउँदैछ
कानै चपाउने उग्र यांत्रिक आवाजहरु
सडक छेउका दोकानहरु कराउँदैछन्
पपगीत/फिल्मीगीतका मस्तिष्कै पकाउने चर्का धूनहरु
साँझ उराठिंदै मौन छ !
उराठिंदै साँझ मौन छ !!
कृतिम हल्लाहरुले थिचेका
चराहरुका संगीतहरु
एक्सपोज्ड बैंशहरुका
भारी बोकिरहेका फुटपाथहरु
साँझ उकुसमुकुसिंदै शान्त छ !
उकुसमुकुसिंदै साँझ शान्त छ !!
तेलकासा, डण्डीबियो, लुकामारी
बिर्सिसकेका बालक गल्लीहरु
राजकुमार दिक्पालका मिथहरु र लोरीहरु
थाती राखेका सुकुमार निश्चल निंद्राहरु
साँझ अत्तालिंदै निस्तब्ध छ !
अत्तालिंदै साँझ निस्तब्ध छ !!
साँझ छ —
यादहरुका कोलाजहरु छन्
अनि
गजलहरुका धूनहरुको तापक्रममा
पग्लिरहेको छ साँझ — आँखाहरुबाट !
पग्लिरहेको छ — चैतको साँझ !!