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"ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए / 'दानिश'" के अवतरणों में अंतर

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सोच कर अर्ज़-ए-तलब वक़्त के सुल्तान से कर
 
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माँगने वाले तेरी बात न ख़ाली जाए
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14:17, 28 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए
बू तअस्सुब की हर इक दिल से निकाली जाए

अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने
बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए

आप ख़ुश हो के अगर हम को इजाज़त दे दें
आप के नाम से इक बज़्म सजा ली जाए

हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है
अब क़लम छोड़ के तलवार उठा ली जाए

सोच कर अर्ज़-ए-तलब वक़्त के सुल्तान से कर
माँगने वाले तेरी बात न ख़ाली जाए