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"पाब्लो नेरूदा की छत से / दीपक जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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18:00, 10 अगस्त 2020 का अवतरण

एक कवि जिसकी कविता चुम्बक की तरह है
जब कवियों की मैं छतें टाप रहा था
नेरूदा की छत पर मेरी आत्मा ठहर गयी
जैसे मेरी धड़कन ठहर गयी थी
एक हिरणी के प्रेम में।
उस वक्त तुम्हारी कविताओं ने
पीछे से मुझे धक्का दिया
मैंने उसके समीप बिल्कुल समीप महसूसा कि
उसकी गर्म सांसो से ही घूम रही है पृथ्वी
उसके पैरों से प्यार करने को कहा तुमने
क्योंकि मेरे लिए वे चली है
आग पर
हवा में और पानी पर।
मेरी रक्त कणिकाओं में घुल गयी
तुम्हारी कविताओं ने मेरी आत्मा से
बस एक आख़िरी बात कही
यदि मरने से पहले तुम कुछ न बचा सको
तो यह याद रखना मेरे बच्चे कम से कम
अपने हृदय में सबके लिए प्रेम को बचाए रखना।