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"बारिश की बून्दें / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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15:08, 19 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

बारिश की बून्दें चुईं
टप...टप...टप
काँस की टटिया पे
छप...छप...छप
बरखा बहार आई
नाच उठा मन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।

उपले समेट भागी
साड़ी लपेट भागी
पारे-सी देह भई
देहरी पे फ़िसल गई
अपनी पड़ोसन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।

बिल में भरा पानी
दुखी चुहिया रानी
बिजली के तार चुए
जल-थल सब एक हुए
पेड़ हैं मगन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।

फरर-फरर बहे बयार
ठण्ड खटखटाए दुआर
कैसे अब आग जले
रोटी का काम चले
मचल रहा मन

घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।