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"ज़ुनून / सपन सारन" के अवतरणों में अंतर

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जब देश में दंगा हो रहा था
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जुनून — आँखों में छिपी वो हंसी
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
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जिसे पता है कि जीत गुलाबी होगी । 
— मेरे गुसल का नल टूटा था
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पानी बहता बचा रहा था
+
  
जब लोग सारे रो रहे थे
+
जो चुपचाप शोर मचा रही है
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
+
आजुओं-बाजुओं को सता रही है
बच्ची मेरी भूखी बड़ी थी
+
जिसके नशे में धुत्त हो
खाना-वाना जुटा रहा था
+
आँखें एक अडिग ज़िद्द लिए
 +
बिना झपके
 +
घूरती रहती हैं इक-टुक
  
जब ख़ून गीला बह रहा था
+
और जिनकी लाली में घुल
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
+
जीवन गुलाबी सा हो रहा हो … 
— आसमां में तारे कम थे
+
मैं धुन्ध-धुआँ हटा रहा था
+
 
+
जब सब बेचारे मर चुके थे
+
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
+
— नंगी क़ब्रें खुली पड़ी थीं
+
इक-इक की चादर बना रहा था
+
 
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14:47, 13 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

जुनून — आँखों में छिपी वो हंसी
जिसे पता है कि जीत गुलाबी होगी ।

जो चुपचाप शोर मचा रही है
आजुओं-बाजुओं को सता रही है
जिसके नशे में धुत्त हो
आँखें एक अडिग ज़िद्द लिए
— बिना झपके
घूरती रहती हैं इक-टुक

और जिनकी लाली में घुल
जीवन गुलाबी सा हो रहा हो …