भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हां मैं तुझसे प्‍यार करता हूं... / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: हां मैं तुझसे प्यार करता हूं जैसे हवाएं सागर की लहरों से करती हैं ...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुमार मुकुल
 +
}}
 +
<poem>
 
हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
 
हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
 
जैसे हवाएं
 
जैसे हवाएं
पंक्ति 28: पंक्ति 33:
 
जैसी कि वेा डूबती चली जाती हैं  
 
जैसी कि वेा डूबती चली जाती हैं  
 
तुम्हारी आंखों की छवि मे ...
 
तुम्हारी आंखों की छवि मे ...
 +
</poem>

00:33, 30 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण

हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
जैसे हवाएं
सागर की लहरों से करती हैं
जिन्हें उछालते हुए खुद को ही
आकार देती हैं वो
और उसमें घुलती हैं थोडा-थोडा
जैसे मेरी हंसी
तुम्हारी आंखों की चमक में घुलती है

हां मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैस नदियां समंदर से करती हैं
जिसमें जा मिलती हैं वो
बिना किसी शोर के
खुद को अनस्तित्व करती हुई
उसकी असीमता को बल प्रदान करतीं

हां मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैसे चांदनी इस धरती से करती है
जिसकी चोटियों को वह
उसी तरह सहलाती है
जैसे उसकी खाइयों को भरती है
अपनी ठंडी फिसलती रोशनी से

हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
जैसे सुबहें और शामें करती हैं मुझसे
जिनमें उगते हुए भू-दृश्यों में
चलती चली जाती हैं निगाहें
जैसी कि वेा डूबती चली जाती हैं
तुम्हारी आंखों की छवि मे ...