भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शरद के दो रंग / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश सलिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
कैसी तो उठान लिए ऋतु के दिठौने ये | कैसी तो उठान लिए ऋतु के दिठौने ये | ||
− | हरित | + | हरित बरन ... हासविलास ...सयननि |
देखो तो ! | देखो तो ! | ||
13:29, 19 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
तोरयी के फूल
हरे हरे पत्तों के बीच सिर उँचाए
सोनबरन तोरयी के फूल
क़ुदरत ने सिरजे हैं शारदीय छौने ये
कैसी तो उठान लिए ऋतु के दिठौने ये
हरित बरन ... हासविलास ...सयननि
देखो तो !
देखो ये हमारे करनफूल !
शरद गान
फूले काँस
उजास सकल बन
हंसा उड़ा अकास
मगन मन
रजत बरन राजैं सर सरिता
बीते दिन चौमास मगन मन
ऊपर तारों का चन्दोबा
भू पर सांस विलास मगन मन
"खंजन नयन तिरीछे सयनि"
प्रकृति नटी कौ लास सकल बन
कातिक मास सरद झमकावै
चन्द कि जोति अकास मगन मन