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"न आना तेरा अब भी / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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५. पहुँच
 
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22:24, 25 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

न आना तेरा अब भी गरचे दिल तड़पा ही जाता है.
तेरे जाने पे भी लेकिन सुकूँ-सा आ ही जाता है.

न बुझने वाला शोला था कि नख्ले-इल्म१ का फल था.
अभी तक दिल से इंसाँ के धुँआ उठता ही जाता है.

ये भोली-भाली दुनिया भी सयानी है कयामत की.
कोई करता है चालाकी,तो धोखा खा ही जाता है.

न यूँ तस्वीरे-उजलत२ बन के बैठो मेरे पहलू में.
मुझे महसूस होता है,कोई उठता ही जाता है.

निखरता ही चला जाता है हुस्न आईना-आईना.
अज़ल३ से दिल के साँचे में कोई ढलता ही जाता है.

मोहब्बत सीधी-सादी चीज़ हो,पर इसको क्या कीजै.
कि कोई सुलझी हुई गुत्थी कोई उलझा ही जाता है.

मेरा ग़म पुरसिशों४ की दस्तरस५ से दूर है हरदम.
मगर खुश हूँ कि जो आता है,कुछ समझा ही जाता है.

दिले-नादाँ,मोहब्बत में ख़ुशी का ये भरम,क्या ख़ूब.
तेरी इस सादगी पर हुस्न को प्यार आ ही जाता है.

उलट जातीं हैं तदबीरें,पलट जातीं हैं तकदीरें.
अगर ढूँढे नई दुनियाँ तो इंसाँ पा ही जाता है.


१. ज्ञान का वृक्ष २. जल्दी का चित्र (अभी आए अभी चले)
३. अनादिकाल ४. पूछताछ
५. पहुँच