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"सरसों खिले( मुक्तक) / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले। | भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले। | ||
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ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले। | ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले। | ||
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विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त। | विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त। | ||
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दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले। | दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले। | ||
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19:28, 24 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले।
ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले।
विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त।
दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले।