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"पीछे छूटी हुई चीज़ें / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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बिजलियों को अपनी चमक दिउखाने की
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बिजलियों को अपनी चमक दिखाने की
 
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कि अपनी आवाज़ें पीछे छोड़ आती थीं
 
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आवाज़ें आती थीं पीछा करतीं
 
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अपनी गायब हो चुकी
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अपनी ग़ायब हो चुकी
 
बिजलियों को तलाशतीं
 
बिजलियों को तलाशतीं
  

15:28, 24 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

बिजलियों को अपनी चमक दिखाने की
इतनी जल्दी मचती थी
कि अपनी आवाज़ें पीछे छोड़ आती थीं
आवाज़ें आती थीं पीछा करतीं
अपनी ग़ायब हो चुकी
बिजलियों को तलाशतीं

टूटते तारों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं
वे इतनी दूर होते हैं
कि उनकी आवाज़ें कहीं
राह में भटक कर रह जाती हैं
हम तक पहुँच ही नहीं पातीं

कभी-कभी रातों के सन्नाटे में
चौंक कर उठ जाता हूँ
सोचता हुआ
कि कहीं यह सन्नाटा किसी ऐसी चीज़ के
टूटने का तो नहीं
जिसे हम हड़बड़ी में बहुत पीछे छोड़ आए हों !