भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इतने थोड़े जल में / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
 
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
|अनुवादक=
+
|अनुवादक=गेरू की लिपियाँ / अमरनाथ श्रीवास्तव
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}

16:26, 28 मार्च 2021 के समय का अवतरण

             कैसे हम काँच के
             घरौन्दों में रहते
             ठेस कहीं लगने का
             भय कितना सहते

इतने थोड़े जल में
ऐसी रंगरलियाँ
हम न हुए शीशे के —
ज़ार की मछलियाँ
सबकी अपनी बोली
किससे क्या कहते
             कैसे हम काँच के
             घरौन्दों में रहते

लोगों को मिलती है —
नीन्द बिना माँगे
लेकिन आदत अपनी
जाए तो जागे
वरना हम भी
सीधी धारा में बहते
             कैसे हम काँच के
             घरौन्दों में रहते

कभी तो मिले होते
वृक्ष हम अभागे
सांसों की धूल बची
आँधी के आगे
ढहते भी तो —
केवल एक बार ढहते
             कैसे हम काँच के
             घरौन्दों में रहते