भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किताब बनूँ / रेखा राजवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:56, 23 जुलाई 2021 के समय का अवतरण
आज मैं फिर से माहताब बनूं
तू मुझे पढ़ तेरी किताब बनूं
शबनमी रात की ख़ुमारी में
तू मुझे पी, तिरी शराब बनूं
पूछे कितने सवाल ये दुनिया
उनकी हर बात का जवाब बनूं
तू भी बन जाए गुल मिरा हमदम
मैं भी महका हुआ शबाब बनूं
तू सहर लाने का तो कर वादा
तेरी ख़ातिर मैं आफ़्ताब बनूं