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कभी तिराहे पर,
कभी आँगन में टाँगा,
कभी किसी खटिया
तो खूँटी से बाँधा,
कभी मतलब से
तो कभी युहीं नकारा
कभी जी चाहा तो,
खूब दिल से पुकारा
कभी पैसों से तो कभी
बेमोल ही खरीदा,
मुझे पा लेने का बस
यही तो है तरीक़ा,
नाम था मेरा भी पर
किसे थी ज़रुरत,
कहते हैं लोग मुझे
ऐसी-वैसी औरत