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"मैं होनी! / रश्मि प्रभा" के अवतरणों में अंतर

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16:15, 24 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण

मैं होनी!
मैं तब से हूँ
जब से संसार बनने की प्रक्रिया शुरू हुई
मैं नींव थी / हूँ होने का
हर ईंट में हूँ
रंग हूँ ,
बेरंग हूँ
ईमारत से खंडहर
खंडहर का पुनर्जीवन
शांत जल में आई सुनामी
सुनामी में भी बचा जीवन...
०००
मैं रोटी बनी
निवाला दिया
तो...
निवाला छीन भी लिया
जीवन दिया
तो जीने में मौत की धुन डाल दी
सावित्री को सुना
उसके पतिव्रता धर्म को उजागर किया
तो कई पतिव्रताओं को नीलाम भी किया...
एक तरफ विश्वास के बीज डाले
दूसरी तरफ विश्वास की जड़ों को खत्म किया
सात फेरे डलवाये
अलग भी किया...
जय का प्रयोजन मेरा
हार का प्रयोजन मेरा
विध्वंस का उद्देश्य मेरा...
०००
मैं होनी,
हूँ तो हूँ
तुम मुझे टाल नहीं सकते!
पृथ्वी को जलमग्न कर
जीवन की पुनरावृति के लिए
मनु और श्रद्धा साक्ष्य थे
मेरे घटित होने का
०००
पात्र रह जाते हैं
ताकि कहानी सुनाई जा सके
गढ़ी जा सके
और इसी अतिरिक्त गढ़ने में
मैं कभी सौम्यता दिखाती हूँ
कभी तार-तार कर देती हूँ
यदि मेरी आँखें
दीये की मानिंद जलती हैं अँधेरे में
तो चिंगारी बनकर तहस-नहस भी करती हैं

क्यूँ?

होनी को उकसाता कौन है?

तुम!!!

ख्याल करते हुए तुम भूल जाते हो
कि ख्यालों के अतिरेक से सामनेवाले को घुटन हो रही है
सामनेवाला भूल जाता है
ख्यालों से बाहर कितने वहशी तत्व हैं
मैं दोनों के मध्य
तालमेल बिठाती हूँ
दशरथ को जिसके हाथों बचाती हूँ
उसीको दशरथ की मृत्यु का कारण बनाती हूँ
तराजू के दो पलड़ों का सामंजस्य देखना होता है
०००
कोई न पूरी तरह सही है
न गलत
परिणाम भी आधारित हैं
न पूरी तरह गलत
न सही!
विवेचना करो
वक़्त दो खुद को
रेशे रेशे उधेड़ो
फिर होनी का मर्म समझो
०००
मैं होनी
सिसकती हूँ
अट्टहास करती हूँ
षड़यंत्र करती हूँ
खुलासा करती हूँ
कुशल तैराक को भी पानी में डुबो देती हूँ
डूबते को तिनके का सहारा देती हूँ
तांडव मेरा
श्रृंगार रस मेरा
मैं ही प्रयोजन बनाती हूँ
मैं ही सारे विकल्प बंद करती हूँ
०००
मैं होनी
मैं ही कृष्ण को शस्त्र उठाने पर बाध्य करती हूँ
मैं होनी
आदिशक्ति को अग्नि में डालती हूँ
मैं होनी
रहस्यों की चादर ओढ़े हर जगह उपस्थित होती हूँ
मैं होनी
किसी विधि से टाली नहीं जा सकती