भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छूट गया है / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
 
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
+
 
भारी मन से चले गए हम
 
भारी मन से चले गए हम
 
 
तजकर पुरखों का घरबार
 
तजकर पुरखों का घरबार
 
 
पीछे मिट्टी धसक रही है
 
पीछे मिट्टी धसक रही है
 
 
गिरती पत्थर की बौछार
 
गिरती पत्थर की बौछार
  
 
थोड़ा मुड़कर देखो भाई
 
थोड़ा मुड़कर देखो भाई
 
 
कैसे बन्द हो रहे द्वार
 
कैसे बन्द हो रहे द्वार
 
 
उनके भीतर छूट गया है
 
उनके भीतर छूट गया है
 
 
एक एक कोठार ।
 
एक एक कोठार ।
  
 +
(1992)
  
(1992)
+
'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए'''
 +
              Manglesh Dabral
 +
    SONG OF THE DISLOCATED
 +
 
 +
With a heavy heart we left
 +
tore away from the ancestral home
 +
mud slips behind us now
 +
stones fall in a hail
 +
 
 +
look back a bit brother
 +
how the doors shut themselves
 +
behind each one of them
 +
a small granary utterly forlorn.
 +
 
 +
1992
 +
(Translated from Hindi by Asad Zaidi)
 +
</poem>

01:27, 11 दिसम्बर 2021 के समय का अवतरण

भारी मन से चले गए हम
तजकर पुरखों का घरबार
पीछे मिट्टी धसक रही है
गिरती पत्थर की बौछार

थोड़ा मुड़कर देखो भाई
कैसे बन्द हो रहे द्वार
उनके भीतर छूट गया है
एक एक कोठार ।

(1992)

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए
               Manglesh Dabral
     SONG OF THE DISLOCATED

With a heavy heart we left
tore away from the ancestral home
mud slips behind us now
stones fall in a hail

look back a bit brother
how the doors shut themselves
behind each one of them
a small granary utterly forlorn.

1992
(Translated from Hindi by Asad Zaidi)