भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिलासा / रेखा राजवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:04, 28 जनवरी 2022 के समय का अवतरण
कमरे में छनती
नर्म धूप ने
मुझको सहलाया
ठंडी हवा ने
हौसला बढ़ाया
पत्तों से ढलकती
ओस ने
मन को बहलाया
और मिट्टी में
अंकुरित पौध ने
मुझसे कहा
देखो, मैं तो वही हूँ न
मैंने कौतूहल भरी
डबडबाती आँखों से देखा
घुलने लगी फिर
विषाद की रेखा
हाँ, ये तो
वाघी आकाश है
वही सूरज है
वही प्रकाश है
कंगारूओं के देश में
सब कुछ है वही
वही धरती
वही हवा
वही प्रकृति
मैंने आँचल का छोर
ढीला किया
और बिखेर दिए
बीज भारतीयता के।