"संविधान / शेखर सिंह मंगलम" के अवतरणों में अंतर
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14:50, 30 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण
उनके हाथ में शासन की पेंसिल
और बहुमत का मिटौना है।
वो मिटाते जा रहे जो पहले लिखा गया,
गदहिया गोल में पढ़ता बच्चा-जैसे
मिटाता है आड़ी-तिरछी लकीर
एक नई सीधी लकीर बनाने के लिए..
बच्चे अबोध होते हैं;
जिनके हाथ में शासन की पेंसिल
और बहुमत का मिटौना है
वे अबोध तो कतई नहीं किन्तु
शासन की पेंसिल
और बहुमत का मिटौना देने वाले
बोध के स्तर पर शून्य हैं-
इस तथ्य में दशमलव भर दुविधा नहीं,
हाँ, दुविधा ये है कि
लोग बटोरे गए विधान की किताब में
मौलिकता की ज़मीन कैसे खोज पाएंगे?
छोड़िए! महराज
कब तक गदहे को घोड़ा समझ
सम्मान की घुड़सवारी करेंगे?
फूँक डालिये हरेक उस नियम-कानून को जो
दलीय सहूलियत के लिए पेला गया है वरना
घर-घाट के मध्य
संविधान का गर्भधान नहीं रुकेगा
और हुक़्मरान धृतराष्ट्रर की तरह
कानूनों का हरेक साल
शतकीय कौरव पैदा करता रहेगा।
चुनाव से बरमाद क्या हुआ
सरकार बन गई मगर आमद क्या हुआ?
वतन के ज़र्रे-ज़र्रे में अलगाववादी तालाब
परौले के धुवें की तरह फैलता यहाँ उन्मादी अज़ाब,
चीन से नहीं पाकिस्तान से रहा हिंदुस्तान ख़तरे में
सियासी सरगोशियां कि
ग़द्दारी भरी है अकलियत के क़तरे में
मज़हबी शिद्दत पसंदगी का इल्म उस्तुरे में
अवामी दस्तूर वही वो रहती जातिय धतूरे में,
लाख, दस-बीस लाख नौकरियों का वादा जो
दे न सके अपनी हुकूमत में हज़ार से ज़्यादा
बनाये थे पिछली दफ़ा
वही कमबख़्त वज़ीरों को प्यादा
अंगूठा दे बना दिये राजा
आबे ज़मज़म कोई लाया तो कोई गंगाजल मगर
सबने सियासी मफ़ाद के लिए तुमको माजा,
कहो! हम-वतनों ख़याल-ए-बदलाव क्या हुआ
तब कि चोर वो
अब कि चोर ये तो साव क्या हुआ?
अगली मर्तबा इस हुकूमत को भी बदलोगो फिर
तारी था जो लगाव वो लगाव क्या हुआ?
सियासतदान सुनहरा आसमान
उसका स्याह क्या हुआ?
छीला हुआ था तुम्हारा नसीब तो न्याय हुआ
हुब्बुल-वतनी का पीने वालों मद
मज़हबी मद क्या हुआ?
चुनाव से बरमाद क्या हुआ
सरकार बन गई मगर आमद क्या हुआ?