भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बंजर तंजीमें / शेखर सिंह मंगलम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेखर सिंह मंगलम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:57, 30 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण

बंजर तंजीमें तालीम-गाहों में
दंगे बोने लगी हैं
तर-ब-तर दीवारें खौफ़ से और
किताबें रोने लगी हैं,

सुकूत के अब्र छाने लगे हैं
इल्म के आसमानों में
मुज़ाहिरों में ख़ूनी लाठियाँ
जिस्मों को धड़-धड़ धोनें लगी हैं,

बाब-ए-इल्म पे
सियासी पासबाँ बैठा है यारो
देवी माँ वागेश्वरी
तालीम-गाहों के बाहर सोने लगी हैं।