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"डाक्टर पतझर / आन्द्रेय वाज़्नेसेंस्की" के अवतरणों में अंतर

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एक
 
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जर्मन कैंप के कैदियों में एक
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जर्मन कैम्प के क़ैदियों में एक
 
प्रमुख चिकित्‍सक
 
प्रमुख चिकित्‍सक
 
हर रात क्‍लास्‍क में
 
हर रात क्‍लास्‍क में
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मुर्दों को
 
मुर्दों को
 
ले जाती हैं गाड़ियाँ
 
ले जाती हैं गाड़ियाँ
सुबह जिंदा हो जाते हैं मुर्दें
+
सुबह ज़िन्द हो जाते हैं मुर्दें
और छेदने लगते हैं बंदूकों से जंगल।
+
और छेदने लगते हैं बन्दूकों से जंगल।
  
 
दो
 
दो
  
 
डाक्‍टर पतझर,
 
डाक्‍टर पतझर,
ओह डाक्‍टर पतझर;
+
ओह डाक्‍टर पतझ !
 
उठ गया है पर्दा
 
उठ गया है पर्दा
 
तुम्‍हारी पीठ से ऊपर
 
तुम्‍हारी पीठ से ऊपर
 
चेचक सरीखे दाग
 
चेचक सरीखे दाग
 
कर दिए हैं गोलियों ने दीवार पर।
 
कर दिए हैं गोलियों ने दीवार पर।
बैरक के ऊपर मँडरा रही है चीखें
+
बैरक के ऊपर मण्डरा रही है चीख़ें
 
उनींदी-सी हैं पागल आँखें
 
उनींदी-सी हैं पागल आँखें
कोट पर अंकित हो गये हैं
+
कोट पर अंकित हो गए हैं
अंधे पदकों के चिह्न।
+
अन्धे पदकों के चिह्न ।
  
 
लवरादोर के महानुभाव
 
लवरादोर के महानुभाव
पाव्‍लोव, मेच्निकोव, हिप्‍पोक्रेट्स
+
पाव्‍लोफ़, मेच्निकफ़, हिप्‍पोक्रेट्स
सब पिटते रहे, खतरे मोल लेते रहे
+
सब पिटते रहे, ख़तरे मोल लेते रहे
 
प्रयोगशालाओं में
 
प्रयोगशालाओं में
किसलिए?
+
किसलिए ?
इसलिए कि फाँसी के फंदे से तीन मीटर की दूरी पर
+
इसलिए कि फ़ाँसी के फ़न्दे से तीन मीटर की दूरी पर
खुर्दबीन की पीली आँखों से
+
ख़ुर्दबीन की पीली आँखों से
 
मौत से बाल-बाल बचते हुए
 
मौत से बाल-बाल बचते हुए
ढूँढ निकालें जीवन मृत्‍यु अणुओं में?
+
ढू्ँढ़ निकालें जीवन मृत्‍यु अणुओं में ?
कि तुम जो कब्रों के भीतर
+
कि तुम जो क़ब्रों के भीतर
पड़े हो जहर से प्रभावित,
+
पड़े हो ज़हर से प्रभावित,
तिगुनी प्रतिभा की जरूरत है इसके लिए
+
तिगुनी प्रतिभा की ज़रूरत है इसके लिए
 
कि प्रेरणाएँ खींच सकें तुम्‍हें बाहर
 
कि प्रेरणाएँ खींच सकें तुम्‍हें बाहर
संसार की ओर।
+
संसार की ओर ।
  
 
और समापन की ध्‍वजाओं को फाड़कर
 
और समापन की ध्‍वजाओं को फाड़कर
तुम चिल्‍ला नहीं सकोगे : ''खोज लिया है!''
+
तुम चिल्‍ला नहीं सकोगे : ''खोज लिया है !''
तख्त से बचाते हुए अपनी खोपड़ी,
+
तख़्त से बचाते हुए अपनी खोपड़ी,
सो जाओ अब चैन से।
+
सो जाओ अब चैन से ।
  
(डाक्‍टर पतझर सो जाते हैं। इसी वक्‍त फ्लास्‍क से साँप की तरह झाग उठती है। उनमें से मैफिस्‍टाफैलीज निकलता है। उसका चेहरा गोल और शेव किया हुआ है। उसके बाल फौजी कट में बने हैं।)
+
(डाक्‍टर पतझर सो जाते हैं। इसी वक्‍त फ्लास्‍क से साँप की तरह झाग उठती है। उनमें से मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज निकलता है। उसका चेहरा गोल और शेव किया हुआ है। उसके बाल फ़ौजी कट में बने हैं।)
  
मैफिस्‍टाफैलीज
+
मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज
हेल, मृत्‍यु!
+
हेल, मृत्‍यु !
 
दोस्‍त, मैं आया हूँ तुम्‍हारे पास
 
दोस्‍त, मैं आया हूँ तुम्‍हारे पास
 
एक नाजुक सुझाव लेकर।
 
एक नाजुक सुझाव लेकर।
  
जीव विज्ञान के संतुलन-बिंदु पर
+
जीव विज्ञान के सन्तुलन-बिन्दु पर
 
पहुँच गए हैं तुम्‍हारे हाथ,
 
पहुँच गए हैं तुम्‍हारे हाथ,
जिंदगी और मौत-बहुत गहरे हैं सवाल।
+
ज़िन्दगी और मौत बहुत गहरे हैं सवाल ।
  
 
उनसे खिलवाड़ करना
 
उनसे खिलवाड़ करना
क्‍या खतरनाक नहीं है?
+
क्‍या ख़तरनाक नहीं है ?
तुम-जैसे मानवतावादी चिकित्‍सा के लिए
+
तुम जैसे मानवतावादी चिकित्‍सा के लिए
 
कहीं अच्‍छा होता बीमारियों के बजाय
 
कहीं अच्‍छा होता बीमारियों के बजाय
दवाइयों का आविष्‍कार करना।
+
दवाइयों का आविष्‍कार करना ।
दूध की बोतलों की तरह सफेद
+
दूध की बोतलों की तरह सफ़ेद
 
चोगा पहने दुनिया भर के चिकित्‍सक
 
चोगा पहने दुनिया भर के चिकित्‍सक
 
भर्त्‍सना करेंगे दम्‍भ सहित
 
भर्त्‍सना करेंगे दम्‍भ सहित
तुम्‍हारे कारनामों की।
+
तुम्‍हारे कारनामों की ।
  
कुदरत की हर चीज-चाँद, गाय, प्‍याज -
+
कुदरत की हर चीज़ — चाँद, गाय, प्‍याज
सबके बीच सामंजस्‍य है।
+
सबके बीच सामंजस्‍य है ।
 
लोकवादी
 
लोकवादी
चुनाव कर रहे हैं अपने राजाओं-महाराजाओं का।
+
चुनाव कर रहे हैं अपने राजाओं-महाराजाओं का ।
  
मुझे भी तो नहीं है संतोष हर चीज पर
+
मुझे भी तो नहीं है सन्तोष हर चीज़ पर
         (फाउस्‍ट का वह किस्‍सा तुम्‍हें याद होगा ही)
+
         (फ़ाउस्‍ट का वह क़िस्‍सा तुम्‍हें याद होगा ही)
  
 
रोकना
 
रोकना
 
वक्‍त को?
 
वक्‍त को?
संभव है, जब भी चाहो।
+
सम्भव है, जब भी चाहो ।
  
तुम देते हो छूट वर्जनाओं को भी।
+
तुम देते हो छूट वर्जनाओं को भी ।
 
अणु की तरह तुम्‍हारी मौत आतिल-जैसी
 
अणु की तरह तुम्‍हारी मौत आतिल-जैसी
 
अचानक विस्‍फोटित होती है महामारी में।
 
अचानक विस्‍फोटित होती है महामारी में।
 
बहुत सजा लिया इन विषाणुओं को
 
बहुत सजा लिया इन विषाणुओं को
 
आओ, अब चल दें
 
आओ, अब चल दें
तहखाने की भट्टी की ओर।
+
तहख़ाने की भट्टी की ओर।
 
वहाँ सस्‍ती दरों पर मुझे मिलता है माल
 
वहाँ सस्‍ती दरों पर मुझे मिलता है माल
आयातित भोजन का आनंद लेते हुए
+
आयातित भोजन का आनन्द लेते हुए
आओ, फ्लर्ट कर लें इस कमसिन मौत के साथ।
+
आओ, फ़्लर्ट कर लें इस कमसिन मौत के साथ ।
तीनों आपस में बाँट खायेंगे
+
तीनों आपस में बाँट खाएँगे
डिब्‍बे में बंद खाने को।
+
डिब्‍बे में बन्द खाने को ।
         (खिड़की के पीछे से मुर्गा बाँग देता है।)
+
         (खिड़की के पीछे से मुर्गा बाँग देता है ।)
मैफिस्‍टाफैलीज
+
मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज
 
(झुँझलाहट में)
 
(झुँझलाहट में)
कु क डूं ऊं-ऊं-ऊं
+
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
कु क डूं ऊं-ऊं-ऊं
+
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
वक्त हो गया है
+
वक़्त हो गया है
अभिवादन कर लें प्रतिद्वंद्वी का!
+
अभिवादन कर लें प्रतिद्वन्द्वी का !
 
         (छिप जाता है)
 
         (छिप जाता है)
 
डाक्‍टर पतझर
 
डाक्‍टर पतझर
 
         (जागते हुए)
 
         (जागते हुए)
मिल रहे हैं पूर्व निर्धारित संकेत। सब कुछ ठीक है
+
मिल रहे हैं पूर्व-निर्धारित संकेत । सब कुछ ठीक है
यानी सभी साथी गुरिल्‍ला टुकड़ी तक पहुँच गये हैं।
+
यानी सभी साथी गुरिल्‍ला टुकड़ी तक पहुँच गये हैं ।
बाँग दे, ओ मुर्गे!
+
बाँग दे, ओ मुर्गे !
कि यातनाओं का अंत पास है।
+
कि यातनाओं का अन्त पास है ।
हमारा प्रयोग-जिंदाबाद!
+
हमारा प्रयोग- ज़िन्दाबाद !
  
 
तीन
 
तीन
  
(डॉक्‍टर पतझर खुर्दबीन में देख रहे है)
+
(डॉक्‍टर पतझर ख़ुर्दबीन में देख रहे है)
हमारी किस्‍मत में है नहीं देख पाना
+
हमारी क़िस्‍मत में है नहीं देख पाना
 
जो कुछ दीखता है उसे
 
जो कुछ दीखता है उसे
उसे तो नाशपाती तक का गुदा दिखाई देता है
+
उसे तो नाशपाती तक का गूदा दिखाई देता है
दिखाई देती हैं समुद्र की अथाह तहें।
+
दिखाई देती हैं समुद्र की अथाह तहें ।
 
पेड़ की छाल की तरह
 
पेड़ की छाल की तरह
 
उघाड़ता है वह हवा की भी छाल,
 
उघाड़ता है वह हवा की भी छाल,
 
और घुसेड़ देता है खूबसूरत झींगों को
 
और घुसेड़ देता है खूबसूरत झींगों को
किटाणुओं की दुनिया में।
+
किटाणुओं की दुनिया में ।
  
 
फूलमालाओं की तरह गुँथे हुए
 
फूलमालाओं की तरह गुँथे हुए
घूम रहे हैं नक्षत्र-समूह।
+
घूम रहे हैं नक्षत्र-समूह ।
हमें तो कुछ भी नजर नहीं आता हवा में
+
हमें तो कुछ भी नज़र नहीं आता हवा में
 
और उसे फलों के रस की शीशी की तरह
 
और उसे फलों के रस की शीशी की तरह
सब कुछ लगता है घना और रंगीन।
+
सब कुछ लगता है घना और रंगीन ।
  
 
और ठीक भूमिगत रेलवे की तरह
 
और ठीक भूमिगत रेलवे की तरह
तुम्‍हारे खुश नथनों में
+
तुम्‍हारे ख़ुश नथनों में
दौड़ लगा रही है जीवाणुओं की फौज।
+
दौड़ लगा रही है जीवाणुओं की फ़ौज ।
  
 
उसे दिखाई देती है गुप्‍त प्रक्रियाएँ और उनके नेगेटिव्‍ज
 
उसे दिखाई देती है गुप्‍त प्रक्रियाएँ और उनके नेगेटिव्‍ज
जो चमकते नजर आते हैं निकोटिन के बीच
+
जो चमकते नज़र आते हैं निकोटिन के बीच
खून की बूँदों की तरह
+
ख़ून की बूँदों की तरह
 
टपक रहे हैं रबीनिया के पत्‍ते
 
टपक रहे हैं रबीनिया के पत्‍ते
बिखर गई है वीर बहूटियाँ इधर-उधर।
+
बिखर गई है वीर बहूटियाँ इधर-उधर ।
ध्‍यान से रखते चलो अपने कदम
+
ध्‍यान से रखते चलो अपने क़दम
कुचल न जाये कहीं उनका अदृश्‍य प्‍यार।
+
कुचल न जाए कहीं उनका अदृश्‍य प्‍यार ।
सावधान!
+
सावधान !
  
 
बर्बर आदिम वनस्‍पतियाँ
 
बर्बर आदिम वनस्‍पतियाँ
आ रही है हमला करने के लिए
+
आ रही हैं हमला करने के लिए
 
जल्‍दी करो, डॉक्‍टर,
 
जल्‍दी करो, डॉक्‍टर,
चिल्‍लाओ… प्‍लेग!
+
चिल्‍लाओ… प्‍लेग !
 
तुम उसके गवाह हो,
 
तुम उसके गवाह हो,
लोगों को तो लगती है हवा स्‍वच्‍छ और निर्मल।
+
लोगों को तो लगती है हवा स्‍वच्‍छ और निर्मल ।
(किसके प्रयोगशाला सहायक का हो गया है दिमाग खराब)
+
(किसके प्रयोगशाला सहायक का हो गया है दिमाग ख़राब)
  
गलती से कह बैठा कुछ इंसान
+
ग़लती से कह बैठा कुछ इनसान
बस इसी से आरंभ हुआ धर्मों का,
+
बस, इसी से आरम्भ हुआ धर्मों का,
 
एक पल से
 
एक पल से
पूरे युग का।
+
पूरे युग का ।
 
लोगों के दैनिक जीवन में
 
लोगों के दैनिक जीवन में
 
आँखें खोलने लगे थे
 
आँखें खोलने लगे थे
 
नवजात विषाणु हिटलरवाद के,
 
नवजात विषाणु हिटलरवाद के,
 
भिनभिना रहे थे
 
भिनभिना रहे थे
अणु रादिश्‍येव और अणु हेगल
+
अणु रदीषिफ़ और अणु हेगल
  
 
और वे लाखों कवि
 
और वे लाखों कवि
जो पैदा नहीं हुए थे प्रति-कन्‍याओं से।
+
जो पैदा नहीं हुए थे प्रति-कन्‍याओं से ।
 
और मध्‍य में
 
और मध्‍य में
दो ध्रुवीय चुंबक या नसों की तरह
+
दो ध्रुवीय चुम्बकों या नसों की तरह
 
काँप रहे थे
 
काँप रहे थे
दो लिंगी कीट डिंब
+
दो लिंगी कीट डिम्ब
जिसमें बंद पड़ा था मृत्‍यु-जीवन।
+
जिसमें बन्द पड़ा था मृत्‍यु-जीवन ।
 
ट न न न...
 
ट न न न...
चूजें के लिए जिंदगी, अंडे के लिए-मौत-
+
चूजें के लिए — ज़िन्दगी, अण्डे के लिए मौत-
जिंदगी।
+
ज़िन्दगी ।
  
 
ट न न न…
 
ट न न न…
 
पहियों के नीचे
 
पहियों के नीचे
यह किसकी हुई ऐनक चकनाचूर।
+
यह किसकी हुई ऐनक चकनाचूर ।
  
 
ट न न न…
 
ट न न न…
कि जिंदगी भाग रही है भेड़ियों की तरफ
+
कि ज़िन्दगी  भाग रही है भेड़ियों की तरफ़
दाँतों में थामें मृत्‍यु-खरगोश।
+
दाँतों में थामे मृत्‍यु-खरगोश ।
 
राकेटों में लेटी है मौत
 
राकेटों में लेटी है मौत
जिंदगी की उनमें क्‍या है गारंटी?
+
ज़िन्दगी की उनमें क्‍या है गारण्टी ?
  
जिंदगी का जन्‍म हुआ है अथाह गहराइयों में
+
ज़िन्दगी का जन्‍म हुआ है अथाह गहराइयों में
 
पुकारा जाता है जिन्‍हें मौत के नामों से,
 
पुकारा जाता है जिन्‍हें मौत के नामों से,
 
मृत्‍यु लाती है हमारे लिए
 
मृत्‍यु लाती है हमारे लिए
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ट न न न…
 
ट न न न…
  
ब्रह्मांड हो जाता है परिवर्तित छोटे-से बिंदु में,
+
ब्रह्माण्ड हो जाता है परिवर्तित छोटे-से बिन्दु में,
 
एक चिनगारी से बनता है प्रभात,
 
एक चिनगारी से बनता है प्रभात,
अणु संसार में है हमारा अंत, हमारा आरंभ।
+
अणु संसार में है हमारा अन्त, हमारा आरम्भ ।
  
 
और तुम इस खेल में
 
और तुम इस खेल में
उतर आये हो ब्रह्मा के विरुद्ध।
+
उतर आये हो ब्रह्मा के विरुद्ध ।
  
फौजियों की तरह शेव किये
+
फ़ौजियों की तरह शेव किए
 
मेरा यह डॉक्‍टर
 
मेरा यह डॉक्‍टर
निर्ममता को बदल रहा है करुणा में।
+
निर्ममता को बदल रहा है करुणा में ।
 
कितना कष्‍टप्रद है यह
 
कितना कष्‍टप्रद है यह
 
कि चेचक के टीके का पहला प्रयोग
 
कि चेचक के टीके का पहला प्रयोग
 
अपने बेटे सरीखे नीली आँखों वाले सिग्‍नलमैन पर करना पड़े
 
अपने बेटे सरीखे नीली आँखों वाले सिग्‍नलमैन पर करना पड़े
 
और अचानक लगे
 
और अचानक लगे
कि बीमारी जा रही है काबू से बाहर?
+
कि बीमारी होती जा रही है काबू से बाहर ?
 
मौत पैदा करने का
 
मौत पैदा करने का
क्‍या हमें कोई अधिकार है?
+
क्‍या हमें कोई अधिकार है ?
  
 
अचानक अणु आकार की यह मौत
 
अचानक अणु आकार की यह मौत
विस्‍फोटित हो जाय यदि महामारी के रूप में
+
विस्‍फोटित हो जाए
 +
यदि महामारी के रूप में
 
और कहीं तुम्‍हारे नीचे ओपेनहाइमर
 
और कहीं तुम्‍हारे नीचे ओपेनहाइमर
भालू की तरह फूहड़ तरीके बैठा हो
+
भालू की तरह फूहड़ तरीके से बैठा हो
 
परमाणु पर…
 
परमाणु पर…
  
(उपसंहार : जिसमें लेखक की मुलाकात नायक से होती है।)
+
(उपसंहार : जिसमें लेखक की मुलाकात नायक से होती है ।)
  
 
तो डॉक्‍टर पतझर,
 
तो डॉक्‍टर पतझर,
आखिर हमारी मुलाकात हो ही गई।
+
आखिर हमारी मुलाकात हो ही गई ।
 
तुम्‍हारे इस एक्‍स-रे कैबिन में
 
तुम्‍हारे इस एक्‍स-रे कैबिन में
 
अपने पापों को बताना ही पड़ता है
 
अपने पापों को बताना ही पड़ता है
किसी ने मेरी कुहनी को ठंडे हाथों से छूकर
+
किसी ने मेरी कुहनी को ठण्डे हाथों से छूकर
 
आगे बढ़ने का संकेत दिया है
 
आगे बढ़ने का संकेत दिया है
और मैं ठंड में जम गया हूँ।
+
और मैं ठण्ड में जम गया हूँ ।
  
 
डाक्‍टर पतझर ने सुनहरी आँखों से देखा
 
डाक्‍टर पतझर ने सुनहरी आँखों से देखा
मेरे आर-पार!
+
मेरे आर-पार !
 
मैंने पहचान लिया
 
मैंने पहचान लिया
मानवता को पहचानती इन आँखों को!
+
मानवता को पहचानती इन आँखों को !
  
 
पतझर,
 
पतझर,
 
क्‍या देख रहे हो तुम, मेरे भीतर
 
क्‍या देख रहे हो तुम, मेरे भीतर
मेरी वांछित या अवांछित जिंदगी में?
+
मेरी वांछित या अवांछित ज़िन्दगी में ?
कहाँ है? कैसे हैं?
+
कहाँ है ? कैसे हैं ?
विनाश, उड़ाने, पाप
+
विनाश, उड़ानें, पाप
और कुचली हुई दर्दभरी दहलीजें?
+
और कुचली हुई दर्दभरी दहलीज़ें ?
 
हम देर तक चाय पीते रहे
 
हम देर तक चाय पीते रहे
 
तुम्‍हारे दमघोंटू कमरे में
 
तुम्‍हारे दमघोंटू कमरे में
तकलीफदेह है कालरों का कसाव
+
तकलीफ़देह है कालरों का कसाव
 
अपने हँसोड़ आँसुओं के बीच
 
अपने हँसोड़ आँसुओं के बीच
तुमने दिखाये अपने एक्‍स-रे के कारनामें
+
तुमने दिखाए अपने एक्‍स-रे के कारनामे
ठीक चंद्रमा की तस्‍वीरों की तरह
+
ठीक चन्द्रमा की तस्‍वीरों की तरह
जिनमें खल रहा है अपने देश के राजचिह्न का न होना।
+
जिनमें खल रहा है अपने देश के राजचिह्न का न होना ।
  
निगल गये वोदका के साथ
+
निगल गए वोदका के साथ
औसत लंबाई का काँटा
+
औसत लम्बाई का काँटा
इस शख्स ने तो पूरा मैडल ही निगल डाला।
+
इस शख़्स ने तो पूरा मैडल ही निगल डाला ।
इसलिए कि बिछड़ न जाय
+
इसलिए कि बिछड़ न जाए
उस पर अंकित चेहरे से!
+
उस पर अंकित चेहरे से !
ओ मैडौना की मुस्‍कान-पेट की भूलभुलैया!
+
ओ मैडौना की मुस्‍कान पेट की भूलभुलैया !
  
अपनी जिंदगी से बेहतर प्‍यार करते
+
अपनी ज़िन्दगी से बेहतर प्‍यार करते
वेनिस निवासी ने तो निगल ही डाला रेडियो बल्‍ब।
+
वेनिस निवासी ने तो निगल ही डाला रेडियो बल्‍ब ।
 
उसने कोशिश की थी
 
उसने कोशिश की थी
उसे प्‍लास से बाहर निकालने की।
+
उसे प्‍लास से बाहर निकालने की ।
अपनी गति की सवायत्‍तता को बचाते हुए
+
अपनी गति की स्वायत्‍तता को बचाते हुए
घंटाघरों की घंटियों की तरह
+
घण्टाघरों की घण्टियों की तरह
बज रही थी घडियाँ सगौरव आँतों में।
+
बज रही थीं घड़ियाँ सगौरव आँतों में ।
 
एक ने तो पूरी अलार्म घड़ी खा डाली
 
एक ने तो पूरी अलार्म घड़ी खा डाली
उसका वक्‍त
+
उसका वक़्त
 
भीतर से ही करता था
 
भीतर से ही करता था
जहरीली घोषणाएँ।
+
ज़हरीली घोषणाएँ ।
 
भले ही हम हों नम्र और नश्‍वर
 
भले ही हम हों नम्र और नश्‍वर
 
लेकिन असाध्‍य हीरे की तरह
 
लेकिन असाध्‍य हीरे की तरह
 
पक रहा है समय हमारे भीतर
 
पक रहा है समय हमारे भीतर
 
शिशु की तरह
 
शिशु की तरह
ठीक दिल के पास।
+
ठीक दिल के पास ।
 
और अचानक हाथी की तरह
 
और अचानक हाथी की तरह
 
जाग उठेंगे सम्‍मोहक स्‍वर
 
जाग उठेंगे सम्‍मोहक स्‍वर
अद्वितीय काल के।
+
अद्वितीय काल के ।
 
काल
 
काल
 
जो पसलियों की हड्डियों को जोड़ेगा
 
जो पसलियों की हड्डियों को जोड़ेगा
 
प्रलय के नगाड़े की तरह
 
प्रलय के नगाड़े की तरह
स्‍वर्ग और पालातगंगा के स्‍वरों से।
+
स्‍वर्ग और पातालगंगा के स्‍वरों से ।
  
 
स्‍पास त्‍यौहार-सा यह काल
 
स्‍पास त्‍यौहार-सा यह काल
 
अगत्‍स्‍य के आश्रम की तरह
 
अगत्‍स्‍य के आश्रम की तरह
 
संकेत देगा तुम्‍हें
 
संकेत देगा तुम्‍हें
आगे फैले कपट-जालों का।
+
आगे फैले कपट-जालों का ।
  
तुम और रूस-एक हो।
+
तुम और रूस एक हो।
ऊब गये हो तुम बिचौलियों से।
+
ऊब गए हो तुम बिचौलियों से ।
सहोदर हैं - जन्‍म और मृत्‍यु,
+
सहोदर हैं जन्‍म और मृत्‍यु,
इसी में है अंतिम सुख।
+
इसी में है अन्तिम सुख ।
 
तब दर्द से सिहरता ब्‍लोक
 
तब दर्द से सिहरता ब्‍लोक
घोषणा करता है बारह की।
+
घोषणा करता है बारह की ।
 
झरोखे से चिपकने के लिए
 
झरोखे से चिपकने के लिए
सिकुड़ गया छोकरा जैसे कूदने के लिए।
+
सिकुड़ गया छोकरा जैसे कूदने के लिए ।
  
 
मैं पैदा हुआ हूँ
 
मैं पैदा हुआ हूँ
 
इस निरभ्र नीलिमा के नीचे
 
इस निरभ्र नीलिमा के नीचे
ताकि रूस के दिगंत को
+
ताकि रूस के दिगन्त को
मैं दे सकूँ स्‍वर।
+
मैं दे सकूँ स्‍वर ।
  
 
पीना ही पड़ेगा हमें
 
पीना ही पड़ेगा हमें
पहाकाल का यह प्‍याला।
+
महाकाल का यह प्‍याला ।
 
</poem>
 
</poem>

10:15, 22 जून 2022 के समय का अवतरण

एक

जर्मन कैम्प के क़ैदियों में एक
प्रमुख चिकित्‍सक
हर रात क्‍लास्‍क में
ऐसी बीमारियों का परीक्षण करते हैं
जिन्‍हें आज तक किसी ने देखा नहीं।
शहतीर के ढेरों की तरह
मुर्दों को
ले जाती हैं गाड़ियाँ
सुबह ज़िन्द हो जाते हैं मुर्दें
और छेदने लगते हैं बन्दूकों से जंगल।

दो

डाक्‍टर पतझर,
ओह डाक्‍टर पतझ !
उठ गया है पर्दा
तुम्‍हारी पीठ से ऊपर
चेचक सरीखे दाग
कर दिए हैं गोलियों ने दीवार पर।
बैरक के ऊपर मण्डरा रही है चीख़ें
उनींदी-सी हैं पागल आँखें
कोट पर अंकित हो गए हैं
अन्धे पदकों के चिह्न ।

लवरादोर के महानुभाव
पाव्‍लोफ़, मेच्निकफ़, हिप्‍पोक्रेट्स
सब पिटते रहे, ख़तरे मोल लेते रहे
प्रयोगशालाओं में
किसलिए ?
इसलिए कि फ़ाँसी के फ़न्दे से तीन मीटर की दूरी पर
ख़ुर्दबीन की पीली आँखों से
मौत से बाल-बाल बचते हुए
ढू्ँढ़ निकालें जीवन मृत्‍यु अणुओं में ?
कि तुम जो क़ब्रों के भीतर
पड़े हो ज़हर से प्रभावित,
तिगुनी प्रतिभा की ज़रूरत है इसके लिए
कि प्रेरणाएँ खींच सकें तुम्‍हें बाहर
संसार की ओर ।

और समापन की ध्‍वजाओं को फाड़कर
तुम चिल्‍ला नहीं सकोगे : खोज लिया है !
तख़्त से बचाते हुए अपनी खोपड़ी,
सो जाओ अब चैन से ।

(डाक्‍टर पतझर सो जाते हैं। इसी वक्‍त फ्लास्‍क से साँप की तरह झाग उठती है। उनमें से मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज निकलता है। उसका चेहरा गोल और शेव किया हुआ है। उसके बाल फ़ौजी कट में बने हैं।)

मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज
हेल, मृत्‍यु !
दोस्‍त, मैं आया हूँ तुम्‍हारे पास
एक नाजुक सुझाव लेकर।

जीव विज्ञान के सन्तुलन-बिन्दु पर
पहुँच गए हैं तुम्‍हारे हाथ,
ज़िन्दगी और मौत — बहुत गहरे हैं सवाल ।

उनसे खिलवाड़ करना
क्‍या ख़तरनाक नहीं है ?
तुम जैसे मानवतावादी चिकित्‍सा के लिए
कहीं अच्‍छा होता बीमारियों के बजाय
दवाइयों का आविष्‍कार करना ।
दूध की बोतलों की तरह सफ़ेद
चोगा पहने दुनिया भर के चिकित्‍सक
भर्त्‍सना करेंगे दम्‍भ सहित
तुम्‍हारे कारनामों की ।

कुदरत की हर चीज़ — चाँद, गाय, प्‍याज —
सबके बीच सामंजस्‍य है ।
लोकवादी
चुनाव कर रहे हैं अपने राजाओं-महाराजाओं का ।

मुझे भी तो नहीं है सन्तोष हर चीज़ पर
        (फ़ाउस्‍ट का वह क़िस्‍सा तुम्‍हें याद होगा ही)

रोकना
वक्‍त को?
सम्भव है, जब भी चाहो ।

तुम देते हो छूट वर्जनाओं को भी ।
अणु की तरह तुम्‍हारी मौत आतिल-जैसी
अचानक विस्‍फोटित होती है महामारी में।
बहुत सजा लिया इन विषाणुओं को
आओ, अब चल दें
तहख़ाने की भट्टी की ओर।
वहाँ सस्‍ती दरों पर मुझे मिलता है माल
आयातित भोजन का आनन्द लेते हुए
आओ, फ़्लर्ट कर लें इस कमसिन मौत के साथ ।
तीनों आपस में बाँट खाएँगे
डिब्‍बे में बन्द खाने को ।
         (खिड़की के पीछे से मुर्गा बाँग देता है ।)
मैफ़िस्‍टाफ़ैलीज
(झुँझलाहट में)
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
वक़्त हो गया है
अभिवादन कर लें प्रतिद्वन्द्वी का !
         (छिप जाता है)
डाक्‍टर पतझर
         (जागते हुए)
मिल रहे हैं पूर्व-निर्धारित संकेत । सब कुछ ठीक है
यानी सभी साथी गुरिल्‍ला टुकड़ी तक पहुँच गये हैं ।
बाँग दे, ओ मुर्गे !
कि यातनाओं का अन्त पास है ।
हमारा प्रयोग- ज़िन्दाबाद !

तीन

(डॉक्‍टर पतझर ख़ुर्दबीन में देख रहे है)
हमारी क़िस्‍मत में है नहीं देख पाना
जो कुछ दीखता है उसे
उसे तो नाशपाती तक का गूदा दिखाई देता है
दिखाई देती हैं समुद्र की अथाह तहें ।
पेड़ की छाल की तरह
उघाड़ता है वह हवा की भी छाल,
और घुसेड़ देता है खूबसूरत झींगों को
किटाणुओं की दुनिया में ।

फूलमालाओं की तरह गुँथे हुए
घूम रहे हैं नक्षत्र-समूह ।
हमें तो कुछ भी नज़र नहीं आता हवा में
और उसे फलों के रस की शीशी की तरह
सब कुछ लगता है घना और रंगीन ।

और ठीक भूमिगत रेलवे की तरह
तुम्‍हारे ख़ुश नथनों में
दौड़ लगा रही है जीवाणुओं की फ़ौज ।

उसे दिखाई देती है गुप्‍त प्रक्रियाएँ और उनके नेगेटिव्‍ज
जो चमकते नज़र आते हैं निकोटिन के बीच
ख़ून की बूँदों की तरह
टपक रहे हैं रबीनिया के पत्‍ते
बिखर गई है वीर बहूटियाँ इधर-उधर ।
ध्‍यान से रखते चलो अपने क़दम
कुचल न जाए कहीं उनका अदृश्‍य प्‍यार ।
सावधान !

बर्बर आदिम वनस्‍पतियाँ
आ रही हैं हमला करने के लिए
जल्‍दी करो, डॉक्‍टर,
चिल्‍लाओ… प्‍लेग !
तुम उसके गवाह हो,
लोगों को तो लगती है हवा स्‍वच्‍छ और निर्मल ।
(किसके प्रयोगशाला सहायक का हो गया है दिमाग ख़राब)

ग़लती से कह बैठा कुछ इनसान
बस, इसी से आरम्भ हुआ धर्मों का,
एक पल से
पूरे युग का ।
लोगों के दैनिक जीवन में
आँखें खोलने लगे थे
नवजात विषाणु हिटलरवाद के,
भिनभिना रहे थे
अणु रदीषिफ़ और अणु हेगल

और वे लाखों कवि
जो पैदा नहीं हुए थे प्रति-कन्‍याओं से ।
और मध्‍य में
दो ध्रुवीय चुम्बकों या नसों की तरह
काँप रहे थे
दो लिंगी कीट डिम्ब
जिसमें बन्द पड़ा था मृत्‍यु-जीवन ।
ट न न न...
चूजें के लिए — ज़िन्दगी, अण्डे के लिए — मौत-
ज़िन्दगी ।

ट न न न…
पहियों के नीचे
यह किसकी हुई ऐनक चकनाचूर ।

ट न न न…
कि ज़िन्दगी भाग रही है भेड़ियों की तरफ़
दाँतों में थामे मृत्‍यु-खरगोश ।
राकेटों में लेटी है मौत
ज़िन्दगी की उनमें क्‍या है गारण्टी ?

ज़िन्दगी का जन्‍म हुआ है अथाह गहराइयों में
पुकारा जाता है जिन्‍हें मौत के नामों से,
मृत्‍यु लाती है हमारे लिए
जीवन नामक व्‍यापार…
ट न न न…

ब्रह्माण्ड हो जाता है परिवर्तित छोटे-से बिन्दु में,
एक चिनगारी से बनता है प्रभात,
अणु संसार में है हमारा अन्त, हमारा आरम्भ ।

और तुम इस खेल में
उतर आये हो ब्रह्मा के विरुद्ध ।

फ़ौजियों की तरह शेव किए
मेरा यह डॉक्‍टर
निर्ममता को बदल रहा है करुणा में ।
कितना कष्‍टप्रद है यह
कि चेचक के टीके का पहला प्रयोग
अपने बेटे सरीखे नीली आँखों वाले सिग्‍नलमैन पर करना पड़े
और अचानक लगे
कि बीमारी होती जा रही है काबू से बाहर ?
मौत पैदा करने का
क्‍या हमें कोई अधिकार है ?

अचानक अणु आकार की यह मौत
विस्‍फोटित हो जाए
यदि महामारी के रूप में
और कहीं तुम्‍हारे नीचे ओपेनहाइमर
भालू की तरह फूहड़ तरीके से बैठा हो
परमाणु पर…

(उपसंहार : जिसमें लेखक की मुलाकात नायक से होती है ।)

तो डॉक्‍टर पतझर,
आखिर हमारी मुलाकात हो ही गई ।
तुम्‍हारे इस एक्‍स-रे कैबिन में
अपने पापों को बताना ही पड़ता है
किसी ने मेरी कुहनी को ठण्डे हाथों से छूकर
आगे बढ़ने का संकेत दिया है
और मैं ठण्ड में जम गया हूँ ।

डाक्‍टर पतझर ने सुनहरी आँखों से देखा
मेरे आर-पार !
मैंने पहचान लिया
मानवता को पहचानती इन आँखों को !

पतझर,
क्‍या देख रहे हो तुम, मेरे भीतर
मेरी वांछित या अवांछित ज़िन्दगी में ?
कहाँ है ? कैसे हैं ?
विनाश, उड़ानें, पाप
और कुचली हुई दर्दभरी दहलीज़ें ?
हम देर तक चाय पीते रहे
तुम्‍हारे दमघोंटू कमरे में
तकलीफ़देह है कालरों का कसाव
अपने हँसोड़ आँसुओं के बीच
तुमने दिखाए अपने एक्‍स-रे के कारनामे
ठीक चन्द्रमा की तस्‍वीरों की तरह
जिनमें खल रहा है अपने देश के राजचिह्न का न होना ।

निगल गए वोदका के साथ
औसत लम्बाई का काँटा
इस शख़्स ने तो पूरा मैडल ही निगल डाला ।
इसलिए कि बिछड़ न जाए
उस पर अंकित चेहरे से !
ओ मैडौना की मुस्‍कान — पेट की भूलभुलैया !

अपनी ज़िन्दगी से बेहतर प्‍यार करते
वेनिस निवासी ने तो निगल ही डाला रेडियो बल्‍ब ।
उसने कोशिश की थी
उसे प्‍लास से बाहर निकालने की ।
अपनी गति की स्वायत्‍तता को बचाते हुए
घण्टाघरों की घण्टियों की तरह
बज रही थीं घड़ियाँ सगौरव आँतों में ।
एक ने तो पूरी अलार्म घड़ी खा डाली
उसका वक़्त
भीतर से ही करता था
ज़हरीली घोषणाएँ ।
भले ही हम हों नम्र और नश्‍वर
लेकिन असाध्‍य हीरे की तरह
पक रहा है समय हमारे भीतर
शिशु की तरह
ठीक दिल के पास ।
और अचानक हाथी की तरह
जाग उठेंगे सम्‍मोहक स्‍वर
अद्वितीय काल के ।
काल
जो पसलियों की हड्डियों को जोड़ेगा
प्रलय के नगाड़े की तरह
स्‍वर्ग और पातालगंगा के स्‍वरों से ।

स्‍पास त्‍यौहार-सा यह काल
अगत्‍स्‍य के आश्रम की तरह
संकेत देगा तुम्‍हें
आगे फैले कपट-जालों का ।

तुम और रूस — एक हो।
ऊब गए हो तुम बिचौलियों से ।
सहोदर हैं — जन्‍म और मृत्‍यु,
इसी में है अन्तिम सुख ।
तब दर्द से सिहरता ब्‍लोक
घोषणा करता है बारह की ।
झरोखे से चिपकने के लिए
सिकुड़ गया छोकरा जैसे कूदने के लिए ।

मैं पैदा हुआ हूँ
इस निरभ्र नीलिमा के नीचे
ताकि रूस के दिगन्त को
मैं दे सकूँ स्‍वर ।

पीना ही पड़ेगा हमें
महाकाल का यह प्‍याला ।