"फूलदान / निर्मलेन्दु गुन / सुलोचना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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सजाने का अवसर पाता; — तो देख पाती लीला, | सजाने का अवसर पाता; — तो देख पाती लीला, | ||
तुम्हारे शरीर को छूकर लावण्य के लोभी फूल | तुम्हारे शरीर को छूकर लावण्य के लोभी फूल | ||
− | उद्वेलित हृदय से नित्य विपर्यस्त<ref>अस्त-व्यस्त</ref> होते, ममता से होकर मत्त | + | उद्वेलित हृदय से नित्य विपर्यस्त<ref>परिवर्तित,अस्त-व्यस्त</ref> होते, ममता से होकर मत्त |
कहते आश्चर्यपूर्वक, कहना ही पड़ता | कहते आश्चर्यपूर्वक, कहना ही पड़ता | ||
'जूड़े जैसा कोई फूलदान नहीं है।' | 'जूड़े जैसा कोई फूलदान नहीं है।' |
20:50, 26 जून 2022 के समय का अवतरण
किसी भी बगीचे से मनपसन्द कोई भी फूल,
किसी भी समय मैं तोड़कर अगर कभी
तुम्हारे जूड़े में, अहा, अजगर से तुम्हारे जूड़े में
सजाने का अवसर पाता; — तो देख पाती लीला,
तुम्हारे शरीर को छूकर लावण्य के लोभी फूल
उद्वेलित हृदय से नित्य विपर्यस्त<ref>परिवर्तित,अस्त-व्यस्त</ref> होते, ममता से होकर मत्त
कहते आश्चर्यपूर्वक, कहना ही पड़ता
'जूड़े जैसा कोई फूलदान नहीं है।'
मूल बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बांग्ला में यही कविता पढ़िए
নির্মলেন্দু গুণ
ফুলদানি
যেকোনো বাগান থেকে যেটা ইচ্ছে সেই ফুল,
যেকোনো সময় আমি তুলে নিয়ে যদি কভু
তোমার খোঁপায়, আহা, অজগর তোমার খোঁপায়
সাজাবার সুজোগ পেতাম–; তাহলে দেখতে লীলা,
তোমার শরীর ছুঁয়ে লাবণ্যের লোভন ফুলেরা
উদ্বেল হৃদয়ে নিত্য বিপর্যস্ত হতো, মত্ত মমতায়
বলতো আশ্চর্য হয়ে, হতো বলতেইঃ
‘খোঁপার মতন কোনো ফুলদানি নেই৷’